Quality Teacher Education
A check over deterioration of values in society
Thrust area: - Quality Teacher Education and Social
Development
By
Shri Anil Kumar Gupta
(M.Com. M.A.(Economics and English Literature). M. Lib. & I.
Sc.DCA
Best Scout Master Award- 2009 ( District – Seoni (M.P.)
Regional Incentive Awardees’ 2014-15
Kendriya Vidyalaya BSF Rampura Fazilka
शिक्षा क्या है ?
:- शिक्षा का अर्थ है शिक्षित करना , ऊपर उठाना , पालन - पोषण करना , प्रशिक्षण देना, संवर्द्धन, नैतिक उत्थान , जीवन मूल्यों का विकास , चारित्रिक गठन तथा पथ प्रदर्शन करना
| शिक्षा
के इस अर्थ के अनुसार शिक्षा व्यक्ति को शिक्षित करती है या उसका पथ प्रदर्शन करती
है तो उसे वर्तमान परिस्थितियों के अनुकूल होना चाहिए | वर्तमान समाज में जहां भ्रष्टाचार , आतंकवाद बेरोजगारी
जैसी कई बुराइयां फ़ैली हुई हैं वहां शिक्षा क्या इन समस्याओं के समाधान में अपनी
भूमिका निभा रही है या निभाने में सक्षम है | जो
शिक्षा समय के साथ – साथ
परिवर्तित न हो वह बोझिल , बेकार
और अनुपयुक्त हो जाती है |
साधारण शब्दों में हम यह भी कह सकते
हैं शिक्षा वह जो व्यक्ति को हर परिस्थिति के लिए तैयार करे | शिक्षा वह जो आसपास के वातावरण के
अवलोकन को आधार बनाकर दी जाए | शिक्षा
को विकास चक्र के अनुसार अपने आप में परिवर्तन लाना चाहिए | शिक्षा
का एक और अर्थ हम ले सकते हैं वह है सीख | सीख जो नैतिक मूल्यों को आधार बनाकर दी जाए |
शिक्षा पर विभिन्न विचार :-
जॉन
ड्यूब ने अनुसार :- “ शिक्षा
एक प्रक्रिया है “
विवेकानंद
के अनुसार “ मनुष्य में जो सम्पूर्णता गुह्व रूप से विद्यमान है है उसे प्रत्यक्ष करना ही शिक्षा का
कार्य है |”
प्लेटो के अनुसार “ देह और आत्मा में अधिक से अधिक जितने सौन्दर्य और जितनी सम्पूर्णता
का विकास हो सकता है , उसे संपन्न करना ही शिक्षा का उद्देश्य है |“
महात्मा गाँधी के अनुसार “ यदि मनुष्य सीखना चाहे तो उसकी हर एक भूल उसे कुछ शिक्षा दे सकती
है |”
हर्बर्ट स्पेंसर “ शिक्षा का ध्येय चरित्र निर्माण है |”
निराला “ संसार में जितनी प्रकार की प्राप्तियां हैं , शिक्षा उनमें
सबसे बढ़कर है |”
प्रेमचंद “ कभी – कभी उन लोगों से भी शिक्षा मिलती है , जिन्हें हम
अभिमानवश अज्ञानी समझते हैं |”
डोडेट के शब्दों में “ शिक्षा का ध्येय मनुष्य के ज्ञान की वृद्धि करना ही नहीं है , अपितु उसका
ध्येय मनुष्य के मष्तिस्क को विकसित करना है |”
रविन्द्रनाथ टैगोर “ मिटटी, पानी और प्रकाश के साथ पूरा – पूरा सम्बन्ध
रहे बिना शरीर की शिक्षा सम्पूर्ण नहीं हो सकती |”
अरस्तू “ जिन्होंने मनुष्य पर शासन करने की कला का अध्ययन किया है , उन्हें यह
विश्वास हो गया है कि युवकों की शिक्षा पर ही राज्य का भाग्य आधारित है |”
अपने सामने सर्वोत्तम आदर्श रखें |”
विवेकानंद के अनुसार “ मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है |”
शिक्षा के बारे में विभिन्न विचार विशेष तौर पर एक ही बात की ओर
इंगित करते हैं वह है मानव का सम्पूर्ण आध्यात्मिक एवं गुणात्मक विकास जो मानव को
समाज के हित के लिए सोचने हेतु बाध्य कर दे एवं उनकी सामजिक आवश्यकता को समाज एवं
देश के हित में उपयोग कर सके |
शिक्षा पर संस्कृत
में विचार :-
१.उद्दमेंन ही सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथै |
नहि सुप्तस्य सिहंस्य प्रव्शन्ति मुखे मृगा: ||
अर्थात , परिश्रम से ही कार्य सिद्ध होते हैं, मात्र इच्छा
करने से नहीं | सोते हुए शेर के मुंह में हिरन स्वयं प्रवेश नहीं करता |
१.तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित |
चाहता हूँ देश की धरती तुम्हें कुछ और भी दूं ||
विद्यार्थी को उसके संकीर्ण दायरे से ऊपर उठना होगा | यह कार्य
शिक्षा का है | शिक्षा विद्यार्थियों में सकारात्मक दृष्टिकोण का विकास करे | उन्हें
शारीरिक , मानसिक व बौद्धिक दृष्टि से इतना सुदृढ़ बनाया जाए कि वे हर परिस्थिति का डटकर मुकाबला कर सकें | देश प्रेम की
भावना का विकास आज शिक्षा का परम उत्तरदायित्व है |
२.श्री शंकर दिग्विजय
“समाशोभत तेन तत्कुलं स च शीलेन परम व्यरोचन |
अपि शीलं दीपि विद्या विनयेनदिद्यते ||”
१.श्रीमद्भभागवद्गीता
“ ज्ञानम् शास्त्रतः आचार्यतः आत्मादीनाम अवबोधः विज्ञानं विशेषतः
तद्नुयवः ||
शिक्षा की आवश्यकता
:-
शिक्षा की आवश्यकता मुख्यतः निम्न कारणों से आवश्यक हो सकती है :-
१.सामाजिक
आवश्यकतायें
२.सम्मान हेतु
आवश्यकता
३.विकास की आवश्यकता
४.सुरक्षात्मक
आवश्यकता
५.शारीरिक आवश्यकता
६.आध्यात्मिक
आवश्यकता
शिक्षा की आवश्यकता
काफी विस्तृत है इसे हम किसी एक जगह या विषय के साथ बांध नहींसकते |
मानव के विकास की प्रथम सीढ़ी है शिक्षा | इसके बिना एक सम्पूर्ण व्यक्तित्व की कल्पना करना असंभव है | यह मानव के सम्मान के विषय के साथ – साथ उसके
विकास की बात भी करता है | मानव अपनी सुरक्षा को निश्चित
करने के लिए ही शिक्षा की शरण में जाता है | मानव अपने
आध्यात्मिक विकास की बात भी करता है जिसके लिए वह अपना शारीरिक विकास भी चाहता है |
मानव का मुख्य लक्ष्य जीवन को उस गंतव्य तक ले जाना होता है जहां
वह अपने आपको मोक्ष के द्वार पर देखना चाहता है |
शिक्षा ही
एकमात्र साधन है जो मानव को सभी प्रकार के एवं उचित निर्णय लेने में मदद करती है |
शिक्षा ही मानव के जीवन को सफल बनाने का एकमात्र अस्त्र है इसके
बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं |
शिक्षा का लक्ष्य-
शिक्षा का मुख्य लक्ष्य युवा पीढ़ी का शारीरिक ,
मानसिक व बौद्धिक विकास होता है |शिक्षा
का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति के भीतर विद्यमान गुणों को विकसित करना होता है और उसे
पूर्णता प्रदान करना होता है | शिक्षा के माध्यम से भौतिक
जीवन व आध्यात्मिक जीवन के बीच के अंतर को स्पष्ट करने का प्रयास किया जाता है |
शिक्षा के माध्यम से किस तरह युवा पीढी को आध्यात्मिक , नैतिक मूल्यों एवं आत्मिक ज्ञान से जोड़ा जाए इस प्रकार के प्रयास किये
जाते हैं ताकि युवा पीढ़ी का पूर्ण विकास हो सके |
शिक्षा के लक्ष्य को
पाने हेतु विभिन्न अभिगमों व अभिनव प्रयोगों का सहारा लिया जाता है |
शिक्षा का उद्देश्य मुख्यतः दो प्रकार की अभिगमों को ध्यान में
रखकर तैयार किया जाता है | एक तो यह कि युवा पीढ़ी को
भौतिक संसाधन के रूप में तैयार किया जाए जिससे उसका देश के विकास में कहीं न कहीं
किसी न किसी रूप में योगदान हो सके | दूसरी ओर युवा पीढ़ी
को इस तरह आध्यात्मिक विश्व से जोड़ा जाए ताकि युवा पीढ़ी देश के भीतर व बाहर
संस्कृति व संस्कारों को प्रचारित करने व उसकी गरिमा बनाए रखने में अपना
महत्वपूर्ण योगदान दे सके | वैसे भी भौतिक विश्व से
ज्यादा महत्वपूर्ण आध्यात्मिक विश्व होता है | संस्कारों
को पूर्णतः विकसित करना व उन्हें संस्कृति में परिवर्तित करना शिक्षा का मुख्य
लक्ष्य होता है |
शिक्षा का एक मुख्य
लक्ष्य यह भी होता है कि युवा पीढ़ी को यथार्थ एवं कल्पना के बीच के अंतर से
परिचित कराया जाए | युवा मन कल्पना के सागर में गोता लगाता है
जिससे उसके मन पर एक विशेष प्रकार का आवरण जगह कर लेता है जिसके कारण वास्तविकता
से उसका परिचय हो पाना बड़ा मुस्किल होता है | शिक्षा ही
एकमात्र अस्त्र है जिससे युवा पीढ़ी को यथार्थ व सच से परिचय कराया जाता है |
शिक्षा के लक्ष्य से पूर्व यह जानना अतिआवश्यक
होता है मानव के जीवन का लक्ष्य क्या है ? क्या वह सुख
सुविधा को जीवन का लक्ष्य मानता है और प्रत्येक सुख को ही जीवन का पर्याय समझता है
या फिर वह भौतिक संसार से परे दूर आध्यात्म की खोज की ओर अग्रसर होना चाहता है |
भारतीय संस्कृति की ओर हम रुख करैं तो पाते हैं कि मानव मुख्यतः
चार धामों को अपने जीवन का लक्ष्य मानता है वे हैं :- धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष | ये चारों धर्म मानव के मानव बनाने की प्रेरणा प्रदान करते हैं और
उन्हें सुसंस्कृत जीवन की ओर प्रेरित करते हैं | समयानुकूल
किये गये सभी कार्य इस चारों धर्मों की सम्पूर्णता की परिणति हो सकते हैं |
शिक्षा एवं धर्म को
एक दूसरे का पूरक कह सकते हैं अर्थात् शिक्षा का आधार धर्म और धर्म का आधार शिक्षा
| शिक्षा का मूल उद्देश्य यह जानना होना चाहिए कि
छात्रों को धर्म का बोध कराया जा सके | इसे पूर्ण
वैज्ञानिक तरीके से समझाया जाये | धर्म के सिद्धांतों एवं
संदेशों को शिक्षा के माध्यम से छात्रों के मन मस्तिस्क में उतारा जाए जिससे धर्म
संस्थापना का उद्देश्य भी पूरा हो सके | धर्म का हमेशा से
ही मूल उद्देश्य परहित एवं समाज का हित रहा है इस लक्ष्य की प्राप्ति ही
वास्तविकता में शिक्षा के लक्ष्य की प्राप्ति है |
वर्तमान शिक्षा प्रणाली
वर्तमान शिक्षा जिस पर आध्निकता व भौतिक संसार्वाद के लक्ष्य को
आधार मानकर युवा पीढ़ी को शिक्षित करने का एक नया दौर जन्म ले चुका है और यही आज
की वर्तमान शिक्षा पद्दति का सबसे भयानक रूप है जो आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्तियों
तक ही पहुँच कायम किए हुए है | जो आर्थिक रूप से सक्षम
नहीं हैं उनसे वर्तमान शिक्षा कोसों दूर है |आज इस बात पर
जोर नहीं कि मानव को मानव के रूप में तैयार किया जाए बल्कि मानव को मशीन बनाने का
प्रयास जोरों पर है | यह एक प्रकार से देश की सांस्कृतिक
धरोहर को दमन करने का एक ऐसा प्रयास है जिसके परिणामस्वरूप संस्कृति व संस्कारों
के विनाश का ऐसा चक्र चलेगा जो मानव को केवल भौतिक संसाधनों में ही चरम सुख की
अनुभूति करने को बाध्य करेगा | जबकि मानव स्वयं भी यह
जानता है कि उसके जीवन का ध्येय भौतिक संसाधनों की उपलब्धि न होकर अध्यात्मिकता
एवं जीवन जीना है जो उसके जीवन में शांति व अध्यात्मिक सुख को संचारित करता है और
उसे उस परम तत्व का बोध कराता है जिसके लिए हमारे पूर्वजों ने हज़ारों वर्षों के
अपने अथक प्रयास से सींचकर संस्कृति व संस्कारों के रूप में पल्लवित किया है |
आज पाश्चात्य संस्कृति के बहाव और काम के प्रभाव ने मानव को
अमानुष बना कर रख दिया है यह इस युग के अंत का परिचायक है |
“सर्वे भवन्तु सुखिनः” जो हमारे पूर्वजों व
धार्मिक ग्रंथों का मूल मन्त्र होता था आज यह “सर्व एवं
मम” तक संकुचित होकर रह गया है | हज़ारों वर्षों के प्रयासों के परिणामस्वरूप हमने जो मन्त्रों के रूप
में धरोहर प्राप्त की और हम आज भी उनके वास्तविक उद्देश्य से परिचित हैं | फिर भी न जाने क्यों इस आधुनिकता नामक विष ने हमें एक ऐसे अंधे कुयें
में धकेल दिया है जहां से बाहर आ पाना मुस्किल ही नहीं नामुमकिन है |
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में जो दोष आज विद्यमान है उसका प्रमुख
कारण भारत में पूर्व में हो चुके शिक्षाविदों , विचारकों ,
सामाजिक कार्यकर्ताओं , शिक्षा के
विद्वानों एवं राष्ट्रनायकों के विचारों को सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक तौर पर
वर्तमान शिक्षा प्रणाली का हिस्सा न बना पाना एक प्रमुख कारण है जो आज की व्यावसायिक
शिक्षा प्रणाली में पूर्णतः परिलक्षित होता है | मानव के
भौतिक विकास की ओर विशेष ध्यान दिए जाने के कारन आज सभ्यता , समाज , धर्म से जुड़े विचारों को आज की शिक्षा
प्रणाली में स्थान न मिल पाना व इसकी उपेक्षा ही आज की दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली का
मुख्य दोष है |
स्वतंत्रता पश्चात शिक्षा प्रणाली एवं इसके विस्तार को भारत में
विशेष प्राथमिकता न दिए जाने का आज परिणाम हमारे सामने है | और यह हमारी आवश्यकता एवं मजबूरी बनकर हमारे सामने उभरा है | इस शिक्षा प्रणाली ने भय , असुरक्षा , हिंसा , अपराध और अशांति को हमारे समाज
में एक बुराई के रूप में प्रस्तुत किया है |
भारी शिक्षा निवेश ने इसे व्यावसायिकता का दर्जा देकर एक भयावह
स्थिति पैदा कर दी है | इन्टरनेट की उपयोगिता ने जहां
सूचना संसार में विस्फोट किया है व सूचना की प्राप्ति व पुनःप्राप्ति को काफी आसान बना दिया है
वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी आपत्तिजनक सामग्री भी बच्चों के सामने पेश कर राखी है जो
उन्हें वास्तविक उम्र से पहले ही बड़े होने के अनुभव का अहसास कराती है |
सामाजिकता अपने पतन की ओर अग्रसर है इसका मुख्य कारण दिन –
प्रतिदिन नैतिक मूल्यों में हो रहा ह्रास है ये सब भारतीय
संस्कृति पर पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव का परिणाम है | वैसे तो पाश्चात्य संस्कृति या कह सकते हैं
पश्चिमी लोगों से भी हम बहुत कुछ अच्छा व समाजोपयोगी सीख सकते हैं जैसे हम उनसे
क़ानून का पालन , नियमों का पालन , देश को सर्वोपरि समझना, किसी भी कार्य के प्रति
समर्पण आदि – आदि |
भारत की कुल जनसँख्या के लगभग 6 करोड़ बच्चे स्कूल भी नहीं जा पाते हैं और दूसरी ओर 15 करोड़ प्राथमिक शिक्षा ले रहे बच्चे समय पूर्व ही अपनी पढ़ाई बीच में
छोड़कर बाल श्रमिक वाले कार्यों में लग जाते हैं | आज
करीब 12 करोड़ बाल श्रमिक भारत में अलग – अलग तरीकों से काम कर रहे हैं | पढ़ाई के लिए
आवश्यक बिजली की रौशनी करीब 50% गावों में
उपलब्ध नहीं है ऐसी स्थिति में सुन्दर सपनों की कल्पना नहीं कर सकते |
सामान्य विषय आधारित शिक्षा के अतिरिक्त शिक्षा प्रणाली में
निम्न विषयों को भी शामिल किया जाना चाहिए :-
१.मनोवैज्ञानिक
शिक्षा
२.व्यावसायिक शिक्षा
३.यौन शिक्षा
४.स्वास्थ्य सम्बन्धी
५.शिक्षा खेलकूद संबंधी शिक्षा
६.धार्मिक शिक्षा
७.आध्यात्मिक शिक्षा
सर्वे
रिपोर्ट :- यह सर्वे UGC द्वारा आयोजित किये जाने
वाले Orientation Programmes and Refresher Courses में भाग
लेने वाले प्रतिभागियों के बीच किया गया जिसमे 68 लोगों पर यह सर्वे किया गया | इस
सर्वे के कुछ आंकड़े इस प्रकार हैं :-
- शिक्षक की समाज में भूमिका :- इस पर
वर्ष 2011 में एक सर्वे किया गया जिसमे शिक्षक की राष्ट्र निर्माता की भूमिका
को 26.47% ने स्वीकार किया जबकि 41.18% लोगों ने इन्हें राष्ट्र निर्माता के
साथ – साथ व्यक्तित्व विकास का माध्यान एवं मार्गदर्शक बताया |
- शिक्षक की समाज में छवि के ऊपर जब सर्वे
किया गया तो पाया गया कि वर्तमान शिक्षा का स्तर काफी खराब है 14.71% लोगों
ने इस स्थिति को गंभीर बताया |
20.59% लोगों ने इसे Changing
Social Attitude बताया
| साथ ही 32.35% ने इसे शिक्षा को पेशेवर होना बताया |
- इसी विषय पर एक और
सर्वे किया गया जिसमे 29.41% लोगों ने गैर – जिम्मेदारी एवं जवाबदेही के
निम्न स्तर को लेकर टिप्पणी की |
- शिक्षा के क्ष्टर में
निजीकरण के ऊपर कुछ लोगों ने कटाक्ष किया और 17.67% लोगों ने निजीकरण के चलते
शिक्षा के स्तर के नीचे गिरने को लेकर चिंता व्यक्त की | शिक्षा के क्षेत्र
में 29.41% लोगों का कहना है कि जो लोग गैर -शिक्षकीय पेशे से जुड़े हैं वे शिक्षकीय संस्थाओं
में क्या कर रहे हैं |
धार्मिक पुस्तकों एवं आध्यात्म पर आधारित
पुस्तकों से मूल्यपरक शिक्षा दी जा सकती है या नहीं जब इस विषय पर सर्वे किया गया
तो पाया कि 20.59% इस बात से सहमत हैं कि इन पुस्तकों का बहुत ही ज्यादा प्रभाव
जीवन में है | 55.88% लोग इन पुस्तकों के प्रभाव से मूल्यपरक शिक्षा दी जा सकती है
को कुछ हद तक स्वीकारते हैं | 23.53% इन पुस्तकों के प्रभाव को नहीं स्वाकारते |
उपरोक्त सर्वे का विश्लेषण करने के पश्चात हम कह सकते हैं कि
समाज के विकास में शिक्षक की भूमिका महत्वपूर्ण हो सकती है यदि सर्वे रिपोर्ट्स का
अध्ययन करने के पश्चात ही हम नीतियों को
कार्यान्वित करें | विद्यार्थियों को इस प्रक्रिया में शामिल करें साथ ही शिक्षक
समाज की भूमिका को नहीं नकारें |
वर्तमान शिक्षा संरचना
की कमियाँ :-
शिक्षा के बदलते
वर्तमान स्वरूप को ध्यान से देखा जाए तो हम यह पाते हैं कि इसमें भी बहुत कुछ
खामियां हैं जो मुख्यतः इस प्रकार हैं :-
१.कंप्यूटर के
अधिकाधिक उपयोग ने विद्यार्थी एवं सूचना के अंतर को ख़त्म कर दिया है जिसका यह
परिणाम हुआ है कि विद्यार्थी पूरी तरह से कंप्यूटर खोज पर निर्भर हो गए हैं साथ ही
विद्यार्थी एवं शिक्षक के बीच अंतर देखा जा सकता है |
२.शैक्षिक पाठ्यक्रम
की बोझिल प्रवृत्ति एवं मानसिक तनाव का परिणाम है जिसके कारण शिक्षा आज कई
बीमारियों को जन्म दे रही है जिससे उबार पाना संभव नहीं |
यह मुख्यतया आज के प्रतियोगी युग के कारण जन्म ले रही है |
३.आज शिक्षा अपने
मुख्य उद्देश्य से दूर होती जा रही है जिसे हम मनुष्य के चरित्र निर्माण की संज्ञा
के नाम से संबोधित करते है |
४.शिक्षा का वर्तमान
स्वरूप व्यवहारिक न होकर सैद्धांतिक हो गया है जिससे व्यवहारिक ज्ञान में कमी देखी
जा सकती है |
५.वर्तमान शिक्षा
बच्चों में शिक्षा देश प्रेम की भावना जगाने एवं मानव मूल्यों को विकसित करने में
कमजोर रही है आज के भौतिक जीवं का इस पर भी प्रभाव देखा जा सकता है|
६.आज की वर्तमान
शिक्षा प्रणाली पर पश्चिमीकरण का भी प्रभाव देखा जा सकता है |
सादा जीवन उच्च विचार की भावनायें आज बीती बातें हो गयी हैं |
७.कक्षा आठवीं तक पास
करने की वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने बच्चों के बौद्धिक विकास को विराम दे दिया है
जिसके दूरगामी परिणाम देखे जा सकते हैं |
८.आज के पूंजीवादी
समाज ने उच्च शिक्षा को एक निश्चित वर्ग तक सीमित कर दिया है जिसके कारण सामाजिक
कुंठा एवं विकास को जन्म मिला है |
९.वर्तमान शिक्षा
प्रणाली ने आज की प्रतिस्पर्धापूर्ण युग में निजी शिक्षा केन्द्रों को जन्म दिया
है जिसके कारण आज शिक्षा एक क्रय – विक्रय
एवं पेशेवर शिक्षा संस्थानों के रूप में देखी जा सकती है |
१० .शिक्षा के सही
प्रचार – प्रसार ना होने से आज शिक्षा का स्तर गिर गया
है एवं शिक्षा के प्रति विशेषतया गावों में लगाव कम दिखाई देता है |
११.शिक्षण संस्थाओं
पर सरकार का शिकंजा कसा न होने के कारण आज शिक्षा संस्थान क्रय –
विक्रय के केंद्र के रूप में देखे जा सकते हैं |
१२.आधनिक शिक्षा
प्रणाली के अंतर्गत कंप्यूटर का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने से गरीब वर्ग के बच्चों
को इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली से कोई ज्यादा फायदा नहीं दिखाई दे रहा है क्योंकि
वे इन साधनों को जुटाने में सक्षम नहीं हैं |
उपरोक्त कमियों ने
शिक्षा के वर्तमान स्वरूप की कलई खोल कर रख दी है जिसके परिणाम से भी हम सब अवगत
हैं | शिक्षा का वर्तमान स्वरूप मानव के विकास से
सम्बंधित न होकर आज उसके भौतिक विकास एवं नैतिक मूल्यों के पतन तक सीमित होकर रह
गया है |
आज की वर्तमान शिक्षा
प्रणाली में सुधार हेतु कुछ सुझाव :-
आज की शिक्षा प्रणाली
में सुधार के लिए प्रयास किये जाने अतिआवश्यक हैं इनके माध्यम से शिक्षा प्रणाली
के अच्छे परिणाम मिल सकते हैं इन्हीं प्रयासों के अंतर्गत हम कुछ सुझावों को इसमें
शामिल कर सकते हैं :-
१.नैतिक शिक्षा एवं
देश प्रेम की भावना को जगाने वाले विचारों को वर्तमान शिक्षा प्रणाली का हिस्सा
बनाया जाए |
२.सभी धर्मों के
प्रति लगाव की भावना को विकसित करने का प्रयास किया जाए |
३.बच्चों के समग्र
विकास के प्रयास किये जायें |
४.शिक्षा सुविधाओं पर
अधिक से अधिक धन खर्च किया जाए |
५.शिक्षा के क्षेत्र
में अधिक से अधिक पुरस्कारों की घोषणा की जाए |
६.पाठ्यक्रम के
अंतर्गत बस्ते के बोझ को कम करने के प्रयास किये जायें |
७.सभी बच्चों के लिए
माध्यमिक शिक्षा अनिवार्य की जाए |
८.बच्चों में विषयों
के चुनाव की स्वतंत्रता के प्रयास किये जायें |
९.कक्षा बारहवीं तक
परीक्षा परिणाम शत प्रतिशत पास घोषित किये जायें |
१०.परीक्षाओं में
सेमेस्टर सिस्टम को इसी तरह बना रहने दिया जाए |
११.बच्चों में
योग्यता के विस्तार के प्रयास किये जायें |
१२.परंपरागत शिक्षण
पद्यति को छोड़ व्यावसायिक शिक्षा पद्यति को अपनाने पर बल दिया जाए |
१३.शिक्षा के क्षेत्र
में सूचना संचार साधनों के अधिक से अधिक प्रयोग पर बल दिया जाए |
१४.राष्ट्रीय स्तर पर
शिक्षा पाठ्यक्रम को एक सा एकीकृत रूप में विकसित किया जाए |
१५.सभी शिक्षण
संस्थाओं में वर्ष भर के लिए समयानुसार पाठ्यक्रम चक्र बनाया जाए जिससे एक जगह से
दूसरी जगह जाने पर बच्चों को समस्याओं का सामना न करना पड़े |
१६.परीक्षा की समय
सारणी पूरे देश में एक सी लागू की जाए |
१७.परीक्षा
परिणाम पूरे देश में एक साथ एक ही समय चक्र के अनुसार घोषित किये जायें |
१८.परियोजना आधारित
एवं असाइनमेंट पर आधारित शिक्षा प्रणाली विकसित की जाए |
१९.शिक्षा के प्रचार
एवं प्रसार के लिए सरकार एवं निजी संस्थाओं को मिल कर काम करना चाहिए |
२०.सरकार द्वारा
शिक्षा के क्षेत्र में शोध कार्य संपन्न किये जायें जिसके दूरगामी अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकें |
21. शिक्षा
के व्यावसायीकरण को रोका जाए साथ ही इसमें निजी संस्थाओं की भूमिका को सुनिश्चित
किया जाए |
22. मूल्यपरक
शिक्षा के विकास के लिए यह आवश्यक है कि मुदालिअर कमीशन, राधाकृष्णन कमीशन, कोठारी
कमीशन के द्वारा दी गयी अनुशंसाओं पर विशेष ध्यान दिया जाए |
23. शिक्षा
को आध्यात्म से जोड़ा जाए |
24. निजी
संस्थाओं को नियंत्रित करने के लिए नियामक संस्था को जवाबदेह बनाया जाए |
इस तरह हम
देख सकते हैं कि इन सुझावों पर यदि गौर किया जाए तो हम शिक्षा के क्षेत्र में
अग्रणी हो सकते हैं | तकनीकी शिक्षा एवं प्रोद्योगिकी के क्षेत्र में भी प्रयास किये जायें |
उपसंहार :- अंत में हम यही कह सकते हैं कि वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सुधार
की अभी भी गुंजाइश है | शिक्षा वही जो मानव के विकास की ओर विशेष ध्यान
दे साथ ही उसके आध्यात्मिक विकास पर पूरा – पूरा जोर दे
जिसका यह परिणाम हो की हम अपनी युवा पीढ़ी का देश
एवं समाज के हित में उपयोग कर सकें |
शिक्षा के वर्तमान स्वरूप में कुछ बदलाव कर हम शिक्षा को समय के
अनुसार उसी रूप में ढाल सकते हैं जहां इसकी उपयोगिता और बढ़ जाए साथ ही शिक्षा के
उद्देश्य को हम पूरा कर सकें | शिक्षा के उस स्वरूप को हम
मान्यता दे सकते हैं जब वह हमारे समाज को एक नयी दिशा दिखाए एवं युवा पीढ़ी को देश
की धरोहर के रूप में तैयार करे एवं एक संसाधन के रूप में विकसित करे
शिक्षा वही जो दार्शनिकों, विचारकों,
शिक्षाविदों के विचारों के सम्मान दे सके साथ ही उनके विचारों को
वर्तमान शिक्षा पद्दति का हिस्सा बना सके | शिक्षा के
वास्तविक लक्ष्य को पाना ही शिक्षा प्रणाली का हिस्सा होना चाहिए जो कि युवा पीढ़ी
में संस्कारों एवं सांस्कृतिक विचारों की गंगा बहा सके उन्हें अच्छे एवं बुरे का
ज्ञान करा सके | इस लेख को लिखने का मेरा उद्देश्य आप तक
शिक्षा प्रणाली में बस रही खामियों को बताना एवं उनमे सुधार की क्या गुजाइश हो
सकती हैं इस ओर आपका ध्यान आकर्षित करना था |
आइये हम सभी शिक्षक समाज के परिवार के सदस्य यह प्रतिज्ञा करैं
कि हम अपने देश को शिक्षा के क्षेत्र में विश्व स्तर पर स्थापित करने के लिए
कटिबद्ध हैं एवं आगे भी ऐसे प्रयासों में अपना योगदान देते रहेंगे |
( इस लेख को पढ़ने के
लिए आपका शुक्रिया )
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