Sunday 13 December 2015

Pre - Rashtrapati Testing camp - 2015 (Gurgaon Division) - A K Gupta acted as Camp Staff










परमात्म स्तुति - द्वारा :- अनिल कुमार गुप्ता - पुस्तकालय अध्यक्ष ( के वी फाजिल्क)

परमात्म स्तुति

हे दया के सागर | हे जगत के पालनकर्ता | हे परमेश्वर | आप ही इस जगत के रक्षक हैं | आप से ही यह जगत पोषित होता है | आप ही धर्म के रक्षक , सीमाओं से परे , परम पूज्य परमदेव , कल्याण के चाहने वाले , मोक्ष मार्ग दिखाने वाले हैं |

                      आपकी महिमा का कहीं अंत नहीं है | प्रकृति के कण – कण में व्याप्त आप परमेश्वर की हम स्तुति करते हैं   | आप प्रसन्न होते हैं तो जग हर्षित होता है | आपके क्रोध के आगे कोई टिक नहीं पाता | राजा को रंक और रंक को राजा बनाने में आप क्षणिक भी समय नहीं लगाते | आपका आदि , मध्य, अंत नहीं है  | हम आपकी कृपा के आकांक्षी हैं | हमारे हर एक प्रयास में , हर एक कर्म में आपकी उपस्थिति हो | हम आपकी आशा अनुरूप जीवन प्राप्त करैं | ऎसी हमारी शुभ इच्छा है |

                 हम अज्ञानी आपके चरण कमलों की वन्दना करते हैं | और आप परमेश्वर से अनुरोध है कि आप हम दीनों पर अपनी कृपा करें | हममे इतनी चातुरी या सामर्थ्य नहीं है कि आपके गुणों का बखान कर सकें | हमारा प्रत्येक कर्म आपकी इच्छा व अपेक्षा अनुरूप हो | हे जगदीश्वर | आपकी स्तुति करने की सामर्थ्य हममे नहीं है | मन्त्रों का हमें ज्ञान नहीं, पूजा की विधी से हम अनभिज्ञ | हम प्राणी आपकी किस तरह स्तुति करें | आपकी प्रसन्नता हेतु हमारे कर्म क्या हों , कैसे हों , प्रभु इन सबका भान आप हमें कराओ  | हम सद्विचारों से पोषित हों | कोमल हृदयी हों | आपके चरणों के अनुरागी हों | कोई भी चीज में हमारा अनुराग न हो  | हे देवों के देव हमारे ह्रदय स्थल में जगह बनाओ | हमे मुक्ति का मार्ग दिखाओ प्रभु | हम मोक्ष के अनुरागी हों | हमारा प्रत्येक कर्म तेरी इच्छा की परिणति हो | ऐसी हमारी भी शुभ इच्छा है | प्रभु कल्याण करो | कल्याण करो | प्रभु कृपा करो | प्रभु कृपा करो |


Sunday 1 November 2015

एक अच्छे वक्ता के गुण - द्वारा :- अनिल कुमार गुप्ता (पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

एक अच्छे वक्ता के गुण

द्वारा 

अनिल कुमार गुप्ता 
पुस्तकालय अध्यक्ष 
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का 

एक अच्छा वक्ता होना एक कला है | इस कला में निपुण होने के लिए व्यक्ति का सामाजिक होना अतिआवश्यक है | मानवीय विचारों से पूर्ण मानव ही एक अच्छा वक्ता हो सकता है | एक व्यक्ति को अच्छा वक्ता होने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि वह दूसरों के विचारों को, वक्तव्यों को सुने | उनसे सुनकर वह अपने अपने वक्तव्य को विभिन्न आयामों से परिपक्व कर सकता है | अच्छे वक्कता को क्षेत्रीय भाषा के साथ – साथ अपने देश की राजभाषा में महारत हासिल करनी चाहिए ताकि भारी भीड़ में भी वह अपनी एक विशेष छाप लोगों के दिलों पर छोड़ सके |
                     एक अच्छा वक्ता होने के लिए ड्रेसिंग सेंस अतिमहत्वपूर्ण है अर्थात जिस प्रकार का कार्यक्र हो उसके अनुरूप ही आपको कपड़े पहनने चाहिए | अच्छा लुक आपके व्यक्तित्व पर चार चंद लगा सकता है | एक अच्छा वक्ता होने के लिए अच्छा श्रोता होना अतिआवश्यक है | हमारे देश में बहुत से ऐसे नेता, दार्शनिक, शिक्षाविद व चिन्तक हुए हैं जिनको हम तो क्या बाहरी देशों के लोग भी आज भी सुनना पसंद करते हैं | चाहे वह किसी भी रूप में उपलब्ध हो video या फिर अन्य किसी रूप में | इनमे विशेष रूप से महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरु, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गाँधी, अन्ना हजारे,  सुभाषचंद्र बोस , अटलबिहारी बाजपेयी, अमर्त्य सेन, विवेकानंद जैसे और भी बहुत से नेता, चिन्तक हुए हैं  जिनके विचारों को लोग आज भी सुनना चाहते हैं | इनमे से कुछ हमारे बीच आज भी मौजूद हैं और देश की युवा पीढ़ी का दिशा निर्देशन कर रहे हैं |
                     एक अच्छे वक्ता को अलंकृत भाषा के साथ – साथ साहित्यिक शब्दों का ज्ञान भी होना चाहिए | वक्तव्य को प्रस्तुत करने की भिन्न – भिन्न शैलियों का ज्ञान होना चाहिए | एक अच्छा वक्ता स्वयं को अलग – अलग अवसरों पर दिए जाने वाले वक्तव्य के लिए तैयार रखता है एक अच्छा वक्तव्य श्रोता के मन पर अमित छाप छोड़ता है | और वह श्रोता ऐसे वक्तव्य बार – बार सुनने के लिए प्रेरित करता है | एक अच्छे वक्ता में मुख्यतय निम्नलिखित गुणों का समावेश होना अतिआवश्यक है :-
1.             वक्तव्य को दैनिक जीवन के साथ जोड़कर पेश करने की क्षमता होनी चाहिए |
2.            वक्तव्य को समसामयिक घटनाओं और समाचारों से जोड़कर सन्दर्भ के रूप में पेश करना चाहिए |
3.             वक्तव्य  रोचक हो इस बात का पूरा – पूरा ध्यान रखा जाए |
4.             वक्तव्य को आरम्भ करते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि वह आरम्भ में ही श्रोता को अपनी ओर आकर्षित कर सके |
5.            वक्तव्य के दौरान श्रोता को इस बात का एहसास कराते रहना चाहिए कि उसकी उपस्थिति बहुत ही ज्यादा महत्वपूर्ण है |
6.             वक्तव्य के आरम्भ में कार्यक्रम में उपस्थित माननीय सदस्यों को कुछ विशेष शब्दों के द्वारा संबोधित करना चाहिए जैसे श्रद्धेय/ परम श्रद्धेय / आदरणीय/ आदर के योग्य / परम आदरणीय / सम्माननीय/ पूज्य/ सम्माननीय व्यक्तित्व  इत्यादि – इत्यादि |
7.            कोशिश इस बात की होनी चाहिए कि वक्तव्य में विषय से हटकर कोई बात शामिल न हो जो आपको आपके विषय से भटका दे |
8.            वक्तव्य में पूर्णता लाने की कोशिश की जानी चाहिए | इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि कोई आवश्यक बात या जानकारी छूट न जाए  | वक्तव्य निष्कर्ष देने वाला होना चाहिए |
9.            वक्तव्य को तथ्य एवं विषय पर आधारित करने का पूरा – पूरा प्रयास किया जाना चाहिए |
10.        वक्तव्य में आवश्यक हो तो आंकड़े भी शामिल किये जा सकते हैं |
11.        वक्तव्य को दिल से एवं हो सके तो मस्तिस्क का पूर्ण उपयोग कर पेश करना चाहिए |
12.        वक्तव्य देने से पूर्व पक्की तैयारी कर लेनी चाहिए ताकि वक्तव्य पेश करने के दौरान किसी प्रकार की परेशानी न हो |
13.        हो सके तो वक्तव्य के दौरान संस्मरण, किसी विशेष व्यक्तित्व के जीवन से जुड़े संस्मरण, कोई महत्वपूर्ण घटना, कविता, शेर आदि का इस्तेमाल भी वक्तव्य को रोचक बनाने के लिए किया जा सकता है |
14.        मुहावरों एवं सूक्तियों का भी बेहतर इस्तेमाल वक्तव्य के दौरान किया जा सकता है |
15.        वक्तव्य में सजीवता लाने का पूरा – पूरा प्रयास किया जाना चाहिए |
16.        वक्तव्य में इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि वक्तव्य का प्रस्तुतीकरण सरल, स्पष्ट एवं क्रमबद्ध हो और विचारों को आपस में एक – दूसरे के साथ जोड़कर पेश किया जाना चाहिए |
17.        आवश्यकता से अधिक शेर या कविता का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए |
18.        वक्तव्य के दौरान इस बात का ध्यान रखा जाए कि विचारों की प्रस्तुति के दौरान आवश्यक नियमों का पालन हो जैसे जगह – जगह पर आरोह – अवरोह का ध्यान रखा जाए | विचारों को जोश के साथ पेश किया जाए | वक्तव्य के अंत में भी आपके भीतर जोश बना रहे और श्रोता आपकी ओर खिंचे रहें इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए |
19.         वक्तव्य को पूरे जोश और उत्साह के साथ पेश किया जाना चाहिए |  वक्तव्य के दौरान किसी भी प्रकार की थकान महसूस न हो इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए |
20.        वक्तव्य को श्रोता के स्तर के अनुरूप तैयार किया जाना चाहिए ताकि वह श्रोता की पहुँच के भीतर हो |
21.        एक अच्छे वक्तव्य में लोकोक्तियों का भी बेहतर इस्तेमाल किया जा सकता है |
22.        वक्तव्य के अंत में श्रोताओं का  आपकी बात ध्यान से सुनने के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया जाना चाहिए |
23.        देश के बाहर यदि आप वक्तव्य दे रहे हों तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि वक्तव्य के आरम्भ में उस देश की संस्कृति के प्रति अपने लगाव को उस देश की भाषा से वक्तव्य आरम्भ कर प्रदर्शित करें |
24.        समसामयिक शब्दावली का प्रयोग करें |
25.        शब्दों का चयन श्रोताओं की आवश्यकता के अनुरूप करें |
अंत में मैं यही कहना चाहता हूँ कि उपरोक्त सभी गुणों में से कुछ ख़ास विशेष को हम यदि अपने वक्तव्य शैली का हिस्सा बना लें तो हम अपने आपको एक श्रेष्ठ वक्ता के रूप में समाज का हिस्सा बना सकते हैं | समाज में एक अलग छाप छोड़ने के लिए उपरोक्त बिंदुओं पर आप जरूर ध्यान देंगे ऐसी मेरी आप सबसे अपेक्षा है |

इस लेख को पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद |


                          


Wednesday 28 October 2015

आस्तिकता ( एक विचार ) द्वारा अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

आस्तिकता

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

आस्तिक भाव का होना अर्थात परमात्मा में विश्वास होना | यह विश्वास परमात्मा के दोनों स्वरूपों में हो सकता है | चाहे वह निराकार के रूप में हो या फिर साकार रूप में | कुछ लोगों का निराकार ब्रह्म में भी विश्वास है किन्तु ऐसे सामाजिक एवं धार्मिक प्राणियों की सख्या इस धरती पर ज्यादा नहीं है | जितनी की साकार ब्रह्म में विश्वास करने वाले | विभिन्न युगों में दुनिया में अलग – अलग क्षेत्रों में जो भी असाधारण मानव हुए हैं उनके सद्कर्मों एवं धर्म की स्थापना के लिए , आदर्श स्थापना के लिए, संस्कृति व संस्कारों के सृजन के लिए , मानवता के लिए उनके द्वारा किये गए प्रयासों के आधार पर ही उन्हें असाधारण मानव या भगवान् की संज्ञा देकर उनके ऋणी होकर उनके द्वारा स्थापित सिद्धांतों का पालन करते हैं | आस्तिक भाव जागृत करने में सदियों से चले आ रहे हमारे धार्मिक ग्रंथों का भी महत्वपूर्ण योगदान है जो कि इन महान विभूतियों के सद्कर्मों के फलस्वरूप रचे गए | पीढ़ियों से चले आ रहीं परम्परायें और समाज में व्याप्त सद्चरित्र ,मनुष्य को  प्रेरित करते हैं कि वे साकार या निराकार ब्रह्म जिसमे भी श्रद्धा रखते हैं उनके सिद्धांतों को अपने जीवन का आधार बनाकर अपने कल्याण के साथ – साथ समाज कल्याण और विश्व कल्याण हित सोच सकें | धार्मिक मान्यताओं  , सिद्धांतों ने मानव को हमेशा मानव बने रहने की ओर प्रेरित किया है |

                 पूर्ण मानव हमेशा अपने आपको परमात्मा को पूर्ण रूप से समर्पित किये रहते हैं | साकार ब्रह्म में स्थिति होने से परमात्मा के साक्षात रूप के दर्शन होने संभावित हो जाते हैं | जबकि निराकार ब्रह्म में परमात्म तत्व किस रूप में अपना साक्षात्कार कराते हैं इसका भान होना थोड़ा कठिन होता है | वैसे तो हम सब यही मानते हैं कि परमात्म तत्व सभी प्राणियों के ह्रदय में स्थित होता है | वह किस रूप में , कब, कहाँ एक असाधारण मानव के रूप में स्वयं का आभास कराये यह कहा नहीं जा सकता | मनुष्य  या तो अपने पिछले जन्म के कर्म के फलस्वरूप अधोगति को प्राप्त होता है या फिर वर्तमान जन्म के कर्मों के फलस्वरूप जो कि पूर्व जन्म के कर्मों से प्रभावित होकर किये जाते हैं जिसका मनुष्य को ज्ञान नहीं होता | मनुष्य को चाहिए कि वह संयमशील हो, कर्तव्यपरायण हो, धार्मिक संस्कारों से परिपूर्ण हो , स्वयं के उद्धार हित कर्म करे | साथ ही मानव कल्याण, समाज कल्याण व राष्ट्र कल्याण हित कार्य करे | आस्तिकता मनुष्य को परमात्मा से जोडती है | मनुष्य सद्कर्मों के माध्यम से स्वयं को बन्धनों से मुक्त कर परमात्मा की ओर मुखरित करता है | और उस परमात्मा की कृपा का पात्र होकर अपने जीवन को चरितार्थ करता है और सामाजिक प्राणी के रूप में स्वयं को प्रतिष्ठित करता है | आस्तिक विचारों से परिपूर्ण मानव , समाज में आदर्श स्थापित करते हैं | इनके विचारों से प्रेरित होकर अन्य मनुष्य स्वयं को भी इसी मार्ग पर प्रस्थित करने का प्रयास करते हैं | आस्तिकता से परिपूर्ण चरित्र समाज के लिए प्रेरणा का कार्य करते हैं | आस्तिक भाव से पूरी तरह से समर्पित चरित्र कुछ ख़ास लक्षणों से युक्त जीवन जीते हैं | जैसे सत्य भाषण , अहिंसा परमो धर्म, सधाचार, धर्म के लिए कष्ट सहन करना , जीवन पर्यंत सादा जीवन उच्च विचार के सिद्धांत का पालन करना, प्राणियों के कल्याणनार्थ कार्य करना , भक्ति में लीं रहना, समाज कल्याण हित कार्य करना, धर्म हित कार्य करना आदि | वर्तमान आधुनिक परिस्थितियों में ऐसे चरित्र ढूंढना समुद्र में से मोती ढूंढना के बराबर है |  आज के असामाजिक परिवेश में स्वयं को आस्तिकता से परिपूर्ण कर ही हम अपना इस संसार से उद्धार कर सकते हैं | आस्तिकता ही मुक्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय है |   

Monday 28 September 2015

परीक्षा शब्द सुनते ही बच्चों में परीक्षा के प्रति डर पैदा हो जाता है आखिर क्यों ? - द्वारा :- अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय (सीमा सुरक्षा बल) फाजिल्का

परीक्षा शब्द सुनते ही बच्चों में परीक्षा के प्रति डर पैदा हो जाता  है आखिर क्यों ?

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
( एम कॉम , एम ए ( अर्थशास्त्र ) एम लिब , डी सी ए , 
एम ए ( अंग्रेजी साहित्य )
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय (सीमा सुरक्षा बल) फाजिल्का

“परीक्षा शब्द सुनकर बहुत से बच्चे मानसिक रूप से अपने आपको परेशान महसूस करने लगे हैं | आखिर ऐसा कुछ बच्चों विशेष  के साथ ऐसा होता है सभी के साथ नहीं | आखिर क्यों ? क्योंकि ऐसा देखा गया है कि बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जिन पर परीक्षा शब्द का कुछ विशेष प्रभाव दिखाई नहीं देता | न ही वे विचलित होते हैं | जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक दैनिक गतिविधि में हम पाते हैं कि हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परीक्षण की प्रक्रिया से गुजर रहे होते हैं | किन्तु इसका प्रत्यक्ष आभास नहीं होता | परीक्षा शब्द की मानसिक परेशानी से बचने का सबसे सरल उपाय है कि बच्चों को बाल्यकाल से ही प्रत्येक प्रयास व उसके परिणाम से विभिन्न चरणों के माध्यम से आभास कराया जाता है | ताकि उन्हें ये पता हो जाए कि हर एक प्रयास की सफल परिणति का एक ही माध्यम है परीक्षण से गुजरना | यदि ऐसा होता है तो समझिये कि बालमन इस प्रक्रिया को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा समझने लगेगा | और उसे भविष्य में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी | इस कार्य में बच्चे के माता – पिता , दादा – दादी, बड़े भाई – बहिन , दोस्त महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं | “डर” एक ऐसा शब्द है जो किसी भी प्रयास के प्रति आपके आंशिक  समर्पण की उपज है | अर्थात आपके प्रयास परिणाम के अनुकूल नहीं हैं | कहावत है “ जब बीज बोया बबूल का तो आम कहाँ से होय “ अर्थात जब सफल प्रयास किये ही नहीं गए तो अच्छे परिणाम की कल्पना किस तरह की जा सकती है |

       विद्यार्थी इस समस्या का सामना प्रायः करते ही रहते हैं | कक्षा परीक्षा , fa – 1 , 2, 3 ,4 , sa – 1, 2 आदि कुछ ऐसे विशेष टेस्ट्स हैं जो कि विद्यार्थी जीवन का हिस्सा हैं | विद्यार्थी परीक्षा शब्द से डरते हैं इसके मुख्यतः निम्नलिखित कारण हैं :-

1.  बचपन से परीक्षा के प्रति मन मस्तिस्क में परीक्षा के प्रति डर का घर बना लेना |

2.  विद्यार्थी अपनी दैनिक अध्ययन का एक निश्चित routine तैयार नहीं करते |

3.  विद्यार्थी अपनी शैक्षिक कमजोरियों को अपने शिक्षकों , पालकों व सहपाठियों के साथ share नहीं करते |

4.  घर पर उचित शिक्षण ,अध्ययन,  अध्यापन संसाधनों का अभाव भी परीक्षा के प्रति भय उत्पन्न करता है | जैसे – शब्दकोष, विश्वकोष, सन्दर्भ पुस्तकें  , key बुक्स, व्याकरण की पुस्तकें, ( अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओं में ) आदि का न होना असुरक्षा की भावना उत्पन्न करता है |

5.  माता – पिता द्वारा घर पर पूर्ण सहयोग न मिलने से भी बच्चे परीक्षा के प्रति डर की भावना से घिरे रहते हैं |

6.  विद्यालय स्तर पर बच्चों में मन मस्तिस्क से परीक्षा का डर निकलने हेतु कोई विशेष प्रयास नहीं किये जाते | जैसे – Educational Counselor” के माध्यम से, शिक्षकों के माध्यम से बच्चों के मन से यह डर निकाला जाए |

7.  बच्चों की नोटबुक का complete न होना भी बच्चों के मन में एक प्रकार का डर पैदा करता है |

8.  परीक्षा पूर्व बच्चों की counseling न किया जाना भी एक समस्या है | चाहे वह घर के स्तर पर हो या फिर विद्यालय स्तर पर |

9.  समय – समय पर बच्चों को उनके द्वारा किये गए प्रयासों के प्रति प्रोत्साहित न करना भी इस डर को और बढ़ाता है |

10.                    समय प्रबंधन के महत्त्व के प्रति बच्चों को वाकिफ न करना भी एक गंभीर समस्या है |

11.                    प्रश्नपत्रों में difficulty level भी ज्यादा होना बच्चों के मन में परीक्षा के प्रति डर पैदा करता है |

12.                    एक निश्चित time table का न होना भी पढ़ाई को बहुत अधिक प्रभावित करता है |

उपाय :- परीक्षा के प्रति बच्चों के मन में जो डर व्याप्त रहता है उसे यूं ही नहीं टालना चाहिए | अपितु इसे गंभीरता से लेकर बच्चे की मदद करना चाहिए | ताकि वह अपने आपको भविष्य के लिए तैयार कर सके | और अपने सपनों को साकार कर सके | कुछ महत्वपूर्ण सुझाव यहाँ आपकी मदद कर सकते हैं :-

1.           बच्चों के लिए घर पर सभी आवश्यक पाठ्य सामग्री की व्यवस्था की जाए ताकि बच्चे को पढ़ाई के समय किसी भी परेशानी का सामना न करना पड़े | और बच्चे को किसी प्रकार का अभाव महसूस न हो |

2.           बच्चों के मन में परीक्षा शब्द के भय को बचपन से ही दूर कर उसे इस दैनिक जीवन का हिस्सा बना दिया जाए तो अच्छा है |

3.           बच्चों को पालकगण बचपन अर्थात नर्सरी से ही पढ़ाई में सहयोग करें | और उसकी कमियों का मूल्यांकन कर उसे दूर करने का  प्रयास करें |

4.           बच्चों को बचपन से ही एक routine के अंतर्गत पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए |

5.           बच्चों को sincere study & time management के प्रति जागरूक किया जाए ताकि बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ सके |

6.           बच्चों के भीतर मन में कसी प्रकार का डर है तो उसके लिए बेहतर हो कि educational counselor का मार्गदर्शन प्राप्त किया जाए |

7.           बच्चों को exam fear पर आधारित motivational films , video’s दिखाएँ ताकि इस डर को कम किया जा सके |

8.           पालक बच्चों को उसके home work and daily study routine में सहयोग करें |

9.           बच्चा जब भी पढ़ाई में कुछ अच्छा कर दिखाए तो उसकी प्रशंसा अवश्य करें | इससे वह प्रोत्साहित तो होता ही है साथ ही उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता है |

10.  शिक्षकों से भी गुजारिश है कि वे CBSE के CCE concept को ध्यान में रखते हुए अलग – अलग बौधिक स्तर के बच्चों के हिसाब से difficulty level को प्रश्नपत्र का हिस्सा बनाएं |

11.  परीक्षा पूर्व सभी विद्यालयों में यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी बच्चों को मार्गदर्शन दिया गया या नहीं और उनकी कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया की नहीं | शिक्षक भी प्रश्पत्र को लेकर हमेशा positive mind से अपना योगदान दें |

12.  विद्यालय व शिक्षा संस्थान समय – समय पर counseling पर workshop आयोजित करें ताकि बच्चों को सही दिशा मिल सके |

13.  परीक्षा से पूर्व शिक्षक हमेशा model question papers की practice को classroom का हिस्सा बनाएं | ताकि प्रश्पत्र के प्रति बच्चों के आत्मविश्वास में वृद्धि हो |

14.  बच्चों की दैनिक गतिविधियों पर पालकगणों को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए जिससे यह पता लग सके की बच्चा पढ़ाई के प्रति इतना sincere है | या फिर वह कहीं गलत दिशा की ओर तो नहीं जा रहा है |

15.   बच्चों के मन में जिन्दगी का एक उद्देश्य जरूर निश्चित करें और वह भी बच्चे से राय लेने के बाद कि वह जिन्दगी में क्या बनना चाहता है और उसके ही अनुरूप आप उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित करें |

निष्कर्ष :- उपरोक्त बातों को यदि हम ध्यान में रखते हैं तो हम पाते हैं कि हम अपने बच्चों के प्रति सचेत हैं और उनके उज्जवल भविष्य को लेकर चिंचित हैं | उपरोक्त उपाय इस दिशा में मील पत्थर साबित हो सकते हैं |

( इस लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया )