Monday 28 September 2015

परीक्षा शब्द सुनते ही बच्चों में परीक्षा के प्रति डर पैदा हो जाता है आखिर क्यों ? - द्वारा :- अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय (सीमा सुरक्षा बल) फाजिल्का

परीक्षा शब्द सुनते ही बच्चों में परीक्षा के प्रति डर पैदा हो जाता  है आखिर क्यों ?

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
( एम कॉम , एम ए ( अर्थशास्त्र ) एम लिब , डी सी ए , 
एम ए ( अंग्रेजी साहित्य )
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय (सीमा सुरक्षा बल) फाजिल्का

“परीक्षा शब्द सुनकर बहुत से बच्चे मानसिक रूप से अपने आपको परेशान महसूस करने लगे हैं | आखिर ऐसा कुछ बच्चों विशेष  के साथ ऐसा होता है सभी के साथ नहीं | आखिर क्यों ? क्योंकि ऐसा देखा गया है कि बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं जिन पर परीक्षा शब्द का कुछ विशेष प्रभाव दिखाई नहीं देता | न ही वे विचलित होते हैं | जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक दैनिक गतिविधि में हम पाते हैं कि हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परीक्षण की प्रक्रिया से गुजर रहे होते हैं | किन्तु इसका प्रत्यक्ष आभास नहीं होता | परीक्षा शब्द की मानसिक परेशानी से बचने का सबसे सरल उपाय है कि बच्चों को बाल्यकाल से ही प्रत्येक प्रयास व उसके परिणाम से विभिन्न चरणों के माध्यम से आभास कराया जाता है | ताकि उन्हें ये पता हो जाए कि हर एक प्रयास की सफल परिणति का एक ही माध्यम है परीक्षण से गुजरना | यदि ऐसा होता है तो समझिये कि बालमन इस प्रक्रिया को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा समझने लगेगा | और उसे भविष्य में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी | इस कार्य में बच्चे के माता – पिता , दादा – दादी, बड़े भाई – बहिन , दोस्त महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं | “डर” एक ऐसा शब्द है जो किसी भी प्रयास के प्रति आपके आंशिक  समर्पण की उपज है | अर्थात आपके प्रयास परिणाम के अनुकूल नहीं हैं | कहावत है “ जब बीज बोया बबूल का तो आम कहाँ से होय “ अर्थात जब सफल प्रयास किये ही नहीं गए तो अच्छे परिणाम की कल्पना किस तरह की जा सकती है |

       विद्यार्थी इस समस्या का सामना प्रायः करते ही रहते हैं | कक्षा परीक्षा , fa – 1 , 2, 3 ,4 , sa – 1, 2 आदि कुछ ऐसे विशेष टेस्ट्स हैं जो कि विद्यार्थी जीवन का हिस्सा हैं | विद्यार्थी परीक्षा शब्द से डरते हैं इसके मुख्यतः निम्नलिखित कारण हैं :-

1.  बचपन से परीक्षा के प्रति मन मस्तिस्क में परीक्षा के प्रति डर का घर बना लेना |

2.  विद्यार्थी अपनी दैनिक अध्ययन का एक निश्चित routine तैयार नहीं करते |

3.  विद्यार्थी अपनी शैक्षिक कमजोरियों को अपने शिक्षकों , पालकों व सहपाठियों के साथ share नहीं करते |

4.  घर पर उचित शिक्षण ,अध्ययन,  अध्यापन संसाधनों का अभाव भी परीक्षा के प्रति भय उत्पन्न करता है | जैसे – शब्दकोष, विश्वकोष, सन्दर्भ पुस्तकें  , key बुक्स, व्याकरण की पुस्तकें, ( अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओं में ) आदि का न होना असुरक्षा की भावना उत्पन्न करता है |

5.  माता – पिता द्वारा घर पर पूर्ण सहयोग न मिलने से भी बच्चे परीक्षा के प्रति डर की भावना से घिरे रहते हैं |

6.  विद्यालय स्तर पर बच्चों में मन मस्तिस्क से परीक्षा का डर निकलने हेतु कोई विशेष प्रयास नहीं किये जाते | जैसे – Educational Counselor” के माध्यम से, शिक्षकों के माध्यम से बच्चों के मन से यह डर निकाला जाए |

7.  बच्चों की नोटबुक का complete न होना भी बच्चों के मन में एक प्रकार का डर पैदा करता है |

8.  परीक्षा पूर्व बच्चों की counseling न किया जाना भी एक समस्या है | चाहे वह घर के स्तर पर हो या फिर विद्यालय स्तर पर |

9.  समय – समय पर बच्चों को उनके द्वारा किये गए प्रयासों के प्रति प्रोत्साहित न करना भी इस डर को और बढ़ाता है |

10.                    समय प्रबंधन के महत्त्व के प्रति बच्चों को वाकिफ न करना भी एक गंभीर समस्या है |

11.                    प्रश्नपत्रों में difficulty level भी ज्यादा होना बच्चों के मन में परीक्षा के प्रति डर पैदा करता है |

12.                    एक निश्चित time table का न होना भी पढ़ाई को बहुत अधिक प्रभावित करता है |

उपाय :- परीक्षा के प्रति बच्चों के मन में जो डर व्याप्त रहता है उसे यूं ही नहीं टालना चाहिए | अपितु इसे गंभीरता से लेकर बच्चे की मदद करना चाहिए | ताकि वह अपने आपको भविष्य के लिए तैयार कर सके | और अपने सपनों को साकार कर सके | कुछ महत्वपूर्ण सुझाव यहाँ आपकी मदद कर सकते हैं :-

1.           बच्चों के लिए घर पर सभी आवश्यक पाठ्य सामग्री की व्यवस्था की जाए ताकि बच्चे को पढ़ाई के समय किसी भी परेशानी का सामना न करना पड़े | और बच्चे को किसी प्रकार का अभाव महसूस न हो |

2.           बच्चों के मन में परीक्षा शब्द के भय को बचपन से ही दूर कर उसे इस दैनिक जीवन का हिस्सा बना दिया जाए तो अच्छा है |

3.           बच्चों को पालकगण बचपन अर्थात नर्सरी से ही पढ़ाई में सहयोग करें | और उसकी कमियों का मूल्यांकन कर उसे दूर करने का  प्रयास करें |

4.           बच्चों को बचपन से ही एक routine के अंतर्गत पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए |

5.           बच्चों को sincere study & time management के प्रति जागरूक किया जाए ताकि बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ सके |

6.           बच्चों के भीतर मन में कसी प्रकार का डर है तो उसके लिए बेहतर हो कि educational counselor का मार्गदर्शन प्राप्त किया जाए |

7.           बच्चों को exam fear पर आधारित motivational films , video’s दिखाएँ ताकि इस डर को कम किया जा सके |

8.           पालक बच्चों को उसके home work and daily study routine में सहयोग करें |

9.           बच्चा जब भी पढ़ाई में कुछ अच्छा कर दिखाए तो उसकी प्रशंसा अवश्य करें | इससे वह प्रोत्साहित तो होता ही है साथ ही उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता है |

10.  शिक्षकों से भी गुजारिश है कि वे CBSE के CCE concept को ध्यान में रखते हुए अलग – अलग बौधिक स्तर के बच्चों के हिसाब से difficulty level को प्रश्नपत्र का हिस्सा बनाएं |

11.  परीक्षा पूर्व सभी विद्यालयों में यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी बच्चों को मार्गदर्शन दिया गया या नहीं और उनकी कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया की नहीं | शिक्षक भी प्रश्पत्र को लेकर हमेशा positive mind से अपना योगदान दें |

12.  विद्यालय व शिक्षा संस्थान समय – समय पर counseling पर workshop आयोजित करें ताकि बच्चों को सही दिशा मिल सके |

13.  परीक्षा से पूर्व शिक्षक हमेशा model question papers की practice को classroom का हिस्सा बनाएं | ताकि प्रश्पत्र के प्रति बच्चों के आत्मविश्वास में वृद्धि हो |

14.  बच्चों की दैनिक गतिविधियों पर पालकगणों को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए जिससे यह पता लग सके की बच्चा पढ़ाई के प्रति इतना sincere है | या फिर वह कहीं गलत दिशा की ओर तो नहीं जा रहा है |

15.   बच्चों के मन में जिन्दगी का एक उद्देश्य जरूर निश्चित करें और वह भी बच्चे से राय लेने के बाद कि वह जिन्दगी में क्या बनना चाहता है और उसके ही अनुरूप आप उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित करें |

निष्कर्ष :- उपरोक्त बातों को यदि हम ध्यान में रखते हैं तो हम पाते हैं कि हम अपने बच्चों के प्रति सचेत हैं और उनके उज्जवल भविष्य को लेकर चिंचित हैं | उपरोक्त उपाय इस दिशा में मील पत्थर साबित हो सकते हैं |

( इस लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया )


   


Monday 21 September 2015

शुभचिंतक - एक विचार - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का




प्रेरणा - एक विचार - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का



कुछ स्वस्थ विचार - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का







कुछ आदर्श विचार - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का







कुछ नए विचार - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का







धर्मपरायण - एक विचार - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का



अर्थपूर्ण व्यस्तता - एक विचार - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का




आत्मविश्वास पर विचार - द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष ) केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का






शिक्षा पर विचार :- द्वारा - अनिल कुमार गुप्ता ( पुस्तकालय अध्यक्ष) के वी फाजिल्का



परिश्रम ( मेहनत ) का जीवन में महत्त्व - संकलनकर्ता - श्री अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

परिश्रम ( मेहनत ) का जीवन में महत्त्व
संकलनकर्ता
श्री अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है आलस | किसी भी कार्य को पूर्ण करने के लिए, अच्छे परिणाम की प्राप्ति के लिए उद्द्योग अर्थात उपाय करना अर्थात परिश्रम करना अतिआवश्यक होता है | किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति में कार्य के प्रति चिंतन उतना महत्वपूर्ण नहीं होता जितना उस कार्य के प्रति प्रत्यक्ष रूप से किया गया प्रयास होता है |

    संस्कृत के एक श्लोक के अनुसार हम कह सकते हैं  :-
उद्दमेन ही सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथः |
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ||

अर्थात सोते हुए सिंह के मुख में जिस तरह हिरण प्रवेश नहीं कर सकता उसके लिए स्वयं सिंह को प्रयास करना पड़ता है ठीक उसी तरह किसी भी कार्य के लिए चिंतन या मनोरथ करना काफी नहीं है उसके लिए प्रत्यक्ष प्रयास करना पड़ता है |
        
हितोपदेश के अनुसार परिश्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं , केवल इच्छा करने से नहीं | पशु सोते हुए सिंह के मुख में अपने आप प्रवेश नहीं करते |

ऋग्वेद के अनुसार  “ बिना स्वयं परिश्रम किये देवों की मैत्री नहीं मिलती “

आलसी व्यक्ति का जीवन समाज व देश के लिए नासूर साबित होता है | इस प्रकार के चरित्रों का यह मानना होता है कि ईश्वर स्वयं सब ठीक कर देंगे | जो  कुछ होता है वह भगवान् की मर्ज़ी से होता है | इस तरह वे अपने दिल को दिलासा दिए रहते हैं और किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं करते | हम सभी जानते हैं केवल परिश्रमी व्यक्ति व लगनशील व्यक्ति ही जीवन में सफल होते हैं | और सफलता उनके कदम चूमती है  उनका समाज में , देश में अभिनन्दन होता है | वे उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं और देश व समाज ऐसे चरित्रों का सम्मान व सत्कार करते हैं |

बाइबिल के अनुसार “ मरते दम तक तू अपने पसीने की रोटी खाना “

इमर्सन लिखते हैं “ अपने बहुमूल्य समय का एक – एक क्षण परिश्रम में व्यतीत करना चाहिए , इसी में आनंद है | ऐसा करने से कोई क्षण भी ऐसा नहीं बचता जब हमें सोच या पछतावा हो “

रोबर्ट कालियर के अनुसार “ मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र उसकी दस उंगलिया हैं”

         हम समाज में ऐसे बहुत से उदाहरण देखते हैं जो परिश्रम व लगन के महत्त्व को चरितार्थ करते हैं | राजस्थान की रेतीली ज़मीं पर नहर बनाकर पानी को दूर – दूर तक पहुंचाने का कारनामा एक राजस्थानी व्यक्ति ने कर दिखाया | बछेन्द्री पाल ने एवेरेस्ट की छोटी पर तिरंगा फहराकर अपनी बहादुरी, लगन , परिश्रम, संकल्प और मेहनत का परिचय दिया | सचिन तेंदुलकर ने लगातार 22 – 24 वर्षों तक क्रिकेट खेलकर बहुत से कीर्तिमान स्थापित किये |

   महात्मा गाँधी ने कहा था  “ दृढ़ संकल्प एक गढ़ के सामान है जो भयंकर प्रलोभनों से बचाता है और डावांडोल होने से हमारी रक्षा करता है |”

विनोभा भावे ने कहा था “ कर्म ही मनुष्य के जीवन को पवित्र व अहिंसक बनाता है “

   परिश्रमी होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है उद्देश्य | जब लक्ष्य की जानकारी और मंजिल का संकल्प साथ होता है तो व्यक्ति कर्मशील हो जाता है | और कर्म करने , परिश्रम करने को वह स्वयं प्रेरित होता है | जिनके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं होता है वे कर्मप्रिय नहीं होते , वे सोचते हैं भाग्य में होगा तो स्वयं ही प्राप्त हो जाएगा | ऐसे चरित्र समाज के विकास में कोई योगदान नहीं देते | हम ऐसे सामाजिक चरित्रों से परिचित हैं जिन्होंने अपने कर्म , धैर्य, दृढ़ शक्ति, साहस और लक्ष्य के प्रति अटल विश्वास से ऐसे – ऐसे उत्तम और आश्चर्यजनक कार्य किये हैं जिनका कोई सानी नहीं है | इन चरित्रों में हम भगवान श्री कृष्ण , श्रीराम, जैसे असाधारण मानवों को शामिल कर सकते हैं | साथ ही इस युग के प्रेमचंद, अकबर, नादिरशाह, शेरशाह, जवाहरलाल नेहरु, महात्मा गाँधी, लालबहादुर शास्त्री आदि का नाम गौरव के साथ ले सकते हैं | वर्तमान समय के चरित्रों में हम खेलकूद के क्षत्र में सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, पी टी उषा, सौरभ गांगुली, सहवाग, राहुल द्रविड़, कपिल देव, श्रीकांत, सानिया मिर्ज़ा, सायना नेहवाल, लिएंडर पेस , महेश भूपति  आदि महान खिलाड़ियों को सम्मान दे सकते हैं जिन्होंने परिश्रम के दम पर यह मुकाम हासिल किया है |

महात्मा गाँधी के अनुसार “ जो शारीरिक परिश्रम नहीं करता उसे खाने का हक़ कैसे हो सकता है”
होमर लिखते हैं “ परिश्रम सभी पर विजयी होता है “
विनोबा भावे लिखते हैं
“ परिश्रम हमारा देवता है “

         किसी सफल व्यक्ति के पीछे कोई – न – कोई आदर्श या प्रेरणा कार्य करती है | इस आदर्शपूर्ण व्यक्ति के चरित्र का हम अवलोकन करें तो पायेंगे कि परिश्रम, समर्पण, मेहनत . लगन ऐसे महत्वपूर्ण प्रेरक तत्व इनकी सफलता का स्रोत रहे हैं | बगैर परिश्रम के उत्कर्ष , उन्नति कि कल्पना भी संभव् नहीं | जीवन में मेहनत को सर्वोपरि समझना और आलस को नगण्य समझना ही विकास, उन्नति और  उत्कर्ष की प्राप्ति करना है | कर्तव्यपरायण चरित्र ही कठिन से कठिन और विषम परिस्थिति को अपने अनुकूल बना लेता है | आलस को हम एक ऐसी बीमारी की संज्ञा देते हैं जिसका कोई उपचार संभव नहीं केवल स्वः प्रेरणा ही व्यक्ति को इससे मुक्ति दिला सकती है | आलस सभी अवगुणों में अव्वल  कहा गया है | आलसी व्यक्तियों को समाज में कायर और निकम्मा समझा जाता है | वे महापुरुषों द्वारा कही गयी वाणी में अर्थ का अनर्थ ढूंढकर स्वयं को कर्तव्य मार्ग से दूर रखते हैं | संत मलूकदास का एक दोहा कुछ इसी तरह का है :-

अजगर करे न चाकरी , पंक्षी करे न काम |
दास मलूका कह गए , सबके दाता राम ||

   जो व्यक्ति परिश्रम से दूर भागते हैं उनके लिए भी  तुलसीदास जी  ने लिखा है :-

कादर , मनु कहूँ एक अधारा, देव – देव आलसी पुकारा ||

सत्यदेव परिब्राजक लिखते हैं “ बिना परिश्रम किये हुए कोई संसार में पूज्य नहीं होता | अनेक बार रगड़ खा – खाकर पत्थर शालिग्राम ( ठाकुर जी ) बन जाता है “

      बहुत से व्यक्ति ये कहते हैं भाग्य में होगा तो ज़रूर मिलेगा | प्रयास करो या न करो | ऐसे चरित्र परिश्रम को सफलता का मूल कारण नहीं मानते हैं जबकि सफल व्यक्तियों का यही मानना है कर्म बिना कुछ भी संभव नहीं अर्थात बगैर प्रयास के कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा सकता | मेहनत द्वारा प्राप्त की गयी सफलता को लम्बे समय तक संजो कर रखा जा सकता है |

तुलसीदास ने कहा है :-
सकल पदारथ है जग माहीं | करमहीन नर पावत नाहीं ||

चाणक्य के अनुसार “ परिश्रम करने से पूर्व देख लेना चाहिए कि उसका प्रतिफल क्या मिलेगा | प्राप्तव्य लाभ से बहुत अधिक परिश्रम हो तो परिश्रम का परित्याग करना भी अभीष्ट है “

      जीवन का लक्ष्य कर्म पथ से होकर गुज़रे ऐसा संकल्प लक्ष्य प्राप्ति का आधार होना चाहिए | क्योनी कर्म करने वाला व्यक्ति ही लक्ष्य प्राप्ति का वास्तविक अधिकारी होता है | कर्म राह से भटके व्यक्ति प्रेरणा का स्रोत नहीं हो सकते | वे केवल दूसरों पर आश्रित होते हैं | स्वयं के प्रयासों पर नहीं | प्रयास करते रहने से व्यक्ति स्वयं को ऊर्जावान बनाए रखता है | चाहे सफलता प्राप्त हो या फिर नहीं | एक बार असफल होने पर हताशा या निराशा नहीं आनी  चाहिए अपितु बार – बार प्रयास करना चाहिए | और वह भी और ज्यादा उत्साह के साथ | मनुष्य का पौरुष उसके कर्म से परिलक्षित होता है |

         कर्म की महत्ता का बखान करते हुए राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह दिनकर लिखते हैं :-

“प्रकृति नहीं डरकर झुकती , कभी भाग्य के बल से |
सदा हारती वह मनुष्य के, उद्यम से , श्रम जल से ||
    
  मनुष्य ने अपने कर्म पौरुष से ऐसे – ऐसे अतिविशिष्ट कार्य किये हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती |  कवि दिनकर मानते हैं कि प्रकृति भी मानव की कर्म प्रधानता के आगे सदा झुकी है | मनुष्य के भाग्य की इसमें कोई विशेष भूमिका नहीं रही है |

   श्री अनिल कुमार गुप्ता ( इस लेख के संकलनकर्ता ) पंक्तियों के माध्यम से लिखते हैं :-

“रचते हैं वे भाग्य स्वयं का, अपने कर्म बल से “
संकल्प कर्म को लिए जी रहे, नहीं इतराते भाग्य पर वे ”

      उपरोक्त पंक्तियों का भी गहन विश्लेषण करने पर हम पाते हैं किश्री अनिल कुमार गुप्ता “  इन पंक्तियों के माध्यम से कर्म को जीवन का संकल्प समझने वाले मानव स्वयं अपने भाग्य को रचते हैं | वे कर्महीन न होकर कर्मपथ पर अग्रसर होते हैं |
      वीर शिवाजी ने अथक परिश्रम कर जो सफलता हासिल की उस सफलता को उनका आलसी और कर्महीन पुत्र संभालकर नहीं रख पाया | झांसी की रानी का पराक्रम, उनकी वीरता और साहस के साथ – साथ कर्मप्रधानता की ओर इंगित करता है |
      यहाँ हम इस विषय पर भी अवश्य गौर करें कि विद्यार्थी जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छूने में परिश्रम की भूमिका सबसे अधिक होती है | कहावत है जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा अर्थात जितना ज्यादा परिश्रम व अनुशासन होगा उतनी ही ज्यदा सफलता की प्राप्ति होगी |

( इस लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया )