परिश्रम ( मेहनत ) का जीवन में
महत्त्व
संकलनकर्ता
श्री अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का
मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है आलस | किसी भी कार्य को पूर्ण करने के
लिए, अच्छे परिणाम की प्राप्ति के लिए उद्द्योग अर्थात उपाय करना अर्थात परिश्रम
करना अतिआवश्यक होता है | किसी भी लक्ष्य की प्राप्ति में कार्य के प्रति चिंतन
उतना महत्वपूर्ण नहीं होता जितना उस कार्य के प्रति प्रत्यक्ष रूप से किया गया
प्रयास होता है |
संस्कृत के एक श्लोक के अनुसार हम कह सकते
हैं :-
उद्दमेन ही सिद्धयन्ति कार्याणि न मनोरथः |
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ||
अर्थात सोते हुए सिंह के मुख में जिस तरह हिरण प्रवेश नहीं कर सकता
उसके लिए स्वयं सिंह को प्रयास करना पड़ता है ठीक उसी तरह किसी भी कार्य के लिए
चिंतन या मनोरथ करना काफी नहीं है उसके लिए प्रत्यक्ष प्रयास करना पड़ता है |
हितोपदेश के अनुसार “
परिश्रम करने से ही कार्य सिद्ध होते हैं , केवल इच्छा करने से नहीं | पशु सोते
हुए सिंह के मुख में अपने आप प्रवेश नहीं करते |
ऋग्वेद के अनुसार
“ बिना स्वयं परिश्रम किये देवों की मैत्री नहीं मिलती “
आलसी व्यक्ति का जीवन समाज व देश के लिए नासूर साबित होता है | इस
प्रकार के चरित्रों का यह मानना होता है कि ईश्वर स्वयं सब ठीक कर देंगे | जो कुछ होता है वह भगवान् की मर्ज़ी से होता है |
इस तरह वे अपने दिल को दिलासा दिए रहते हैं और किसी भी प्रकार का प्रयास नहीं करते
| हम सभी जानते हैं केवल परिश्रमी व्यक्ति व लगनशील व्यक्ति ही जीवन में सफल होते
हैं | और सफलता उनके कदम चूमती है उनका
समाज में , देश में अभिनन्दन होता है | वे उत्कर्ष को प्राप्त होते हैं और देश व
समाज ऐसे चरित्रों का सम्मान व सत्कार करते हैं |
बाइबिल के
अनुसार “
मरते दम तक तू अपने पसीने की रोटी खाना “
इमर्सन लिखते
हैं “ अपने बहुमूल्य समय का एक
– एक क्षण परिश्रम में व्यतीत करना चाहिए , इसी में आनंद है | ऐसा करने से कोई
क्षण भी ऐसा नहीं बचता जब हमें सोच या पछतावा हो “
रोबर्ट कालियर के
अनुसार “ मनुष्य की सबसे अच्छी
मित्र उसकी दस उंगलिया हैं”
हम समाज में ऐसे
बहुत से उदाहरण देखते हैं जो परिश्रम व लगन के महत्त्व को चरितार्थ करते हैं |
राजस्थान की रेतीली ज़मीं पर नहर बनाकर पानी को दूर – दूर तक पहुंचाने का कारनामा
एक राजस्थानी व्यक्ति ने कर दिखाया | बछेन्द्री पाल ने एवेरेस्ट की छोटी पर तिरंगा फहराकर अपनी बहादुरी, लगन ,
परिश्रम, संकल्प और मेहनत का परिचय दिया | सचिन तेंदुलकर ने लगातार 22 – 24 वर्षों तक क्रिकेट खेलकर बहुत से कीर्तिमान
स्थापित किये |
महात्मा गाँधी ने कहा था “ दृढ़ संकल्प एक गढ़ के सामान है जो भयंकर प्रलोभनों से बचाता
है और डावांडोल होने से हमारी रक्षा करता है |”
विनोभा भावे ने कहा था “ कर्म ही
मनुष्य के जीवन को पवित्र व अहिंसक बनाता है “
परिश्रमी होने के लिए
सबसे महत्वपूर्ण है उद्देश्य | जब लक्ष्य की जानकारी और मंजिल का संकल्प साथ होता
है तो व्यक्ति कर्मशील हो जाता है | और कर्म करने , परिश्रम करने को वह स्वयं
प्रेरित होता है | जिनके जीवन का कोई लक्ष्य नहीं होता है वे कर्मप्रिय नहीं होते
, वे सोचते हैं भाग्य में होगा तो स्वयं ही प्राप्त हो जाएगा | ऐसे चरित्र समाज के
विकास में कोई योगदान नहीं देते | हम ऐसे सामाजिक चरित्रों से परिचित हैं
जिन्होंने अपने कर्म , धैर्य, दृढ़ शक्ति, साहस और लक्ष्य के प्रति अटल विश्वास से
ऐसे – ऐसे उत्तम और आश्चर्यजनक कार्य किये हैं जिनका कोई सानी नहीं है | इन
चरित्रों में हम भगवान श्री कृष्ण , श्रीराम, जैसे असाधारण मानवों को शामिल कर
सकते हैं | साथ ही इस युग के प्रेमचंद, अकबर, नादिरशाह, शेरशाह, जवाहरलाल नेहरु,
महात्मा गाँधी, लालबहादुर शास्त्री आदि का नाम गौरव के साथ ले सकते हैं | वर्तमान
समय के चरित्रों में हम खेलकूद के क्षत्र में सचिन तेंदुलकर, सुनील गावस्कर, पी टी
उषा, सौरभ गांगुली, सहवाग, राहुल द्रविड़, कपिल देव, श्रीकांत, सानिया मिर्ज़ा,
सायना नेहवाल, लिएंडर पेस , महेश भूपति आदि महान खिलाड़ियों को सम्मान दे सकते हैं
जिन्होंने परिश्रम के दम पर यह मुकाम हासिल किया है |
महात्मा गाँधी के अनुसार “ जो शारीरिक परिश्रम नहीं करता उसे खाने का हक़ कैसे हो सकता है”
होमर लिखते
हैं “ परिश्रम सभी पर विजयी
होता है “
विनोबा भावे लिखते
हैं
“ परिश्रम हमारा देवता है “
किसी सफल व्यक्ति
के पीछे कोई – न – कोई आदर्श या प्रेरणा कार्य करती है | इस आदर्शपूर्ण व्यक्ति के
चरित्र का हम अवलोकन करें तो पायेंगे कि परिश्रम, समर्पण, मेहनत . लगन ऐसे
महत्वपूर्ण प्रेरक तत्व इनकी सफलता का स्रोत रहे हैं | बगैर परिश्रम के उत्कर्ष ,
उन्नति कि कल्पना भी संभव् नहीं | जीवन में मेहनत को सर्वोपरि समझना और आलस को
नगण्य समझना ही विकास, उन्नति और उत्कर्ष
की प्राप्ति करना है | कर्तव्यपरायण चरित्र ही कठिन से कठिन और विषम परिस्थिति को
अपने अनुकूल बना लेता है | आलस को हम एक ऐसी बीमारी की संज्ञा देते हैं जिसका कोई
उपचार संभव नहीं केवल स्वः प्रेरणा ही व्यक्ति को इससे मुक्ति दिला सकती है | आलस
सभी अवगुणों में अव्वल कहा गया है | आलसी
व्यक्तियों को समाज में कायर और निकम्मा समझा जाता है | वे महापुरुषों द्वारा कही
गयी वाणी में अर्थ का अनर्थ ढूंढकर स्वयं को कर्तव्य मार्ग से दूर रखते हैं | संत मलूकदास का एक दोहा कुछ इसी तरह का है :-
अजगर करे न चाकरी , पंक्षी करे न काम |
दास मलूका कह गए , सबके दाता राम ||
जो व्यक्ति
परिश्रम से दूर भागते हैं उनके लिए भी तुलसीदास जी ने लिखा है
:-
कादर , मनु कहूँ एक अधारा, देव – देव आलसी पुकारा ||
सत्यदेव परिब्राजक लिखते
हैं “ बिना परिश्रम किये हुए
कोई संसार में पूज्य नहीं होता | अनेक बार रगड़ खा – खाकर पत्थर शालिग्राम ( ठाकुर
जी ) बन जाता है “
बहुत से व्यक्ति ये
कहते हैं भाग्य में होगा तो ज़रूर मिलेगा | प्रयास करो या न करो | ऐसे चरित्र
परिश्रम को सफलता का मूल कारण नहीं मानते हैं जबकि सफल व्यक्तियों का यही मानना है
कर्म बिना कुछ भी संभव नहीं अर्थात बगैर प्रयास के कुछ भी प्राप्त नहीं किया जा
सकता | मेहनत द्वारा प्राप्त की गयी सफलता को लम्बे समय तक संजो कर रखा जा सकता है
|
तुलसीदास ने कहा है :-
सकल पदारथ है जग माहीं | करमहीन नर पावत नाहीं ||
चाणक्य के अनुसार “ परिश्रम करने से पूर्व देख लेना
चाहिए कि उसका प्रतिफल क्या मिलेगा | प्राप्तव्य लाभ से बहुत अधिक परिश्रम हो तो
परिश्रम का परित्याग करना भी अभीष्ट है “
जीवन का लक्ष्य कर्म
पथ से होकर गुज़रे ऐसा संकल्प लक्ष्य प्राप्ति का आधार होना चाहिए | क्योनी कर्म
करने वाला व्यक्ति ही लक्ष्य प्राप्ति का वास्तविक अधिकारी होता है | कर्म राह से
भटके व्यक्ति प्रेरणा का स्रोत नहीं हो सकते | वे केवल दूसरों पर आश्रित होते हैं
| स्वयं के प्रयासों पर नहीं | प्रयास करते रहने से व्यक्ति स्वयं को ऊर्जावान
बनाए रखता है | चाहे सफलता प्राप्त हो या फिर नहीं | एक बार असफल होने पर हताशा या
निराशा नहीं आनी चाहिए अपितु बार – बार
प्रयास करना चाहिए | और वह भी और ज्यादा उत्साह के साथ | मनुष्य का पौरुष उसके
कर्म से परिलक्षित होता है |
कर्म की
महत्ता का बखान करते हुए राष्ट्रकवि श्री रामधारी
सिंह दिनकर लिखते हैं :-
“प्रकृति नहीं डरकर झुकती , कभी भाग्य के बल से |
सदा हारती वह मनुष्य के, उद्यम से , श्रम जल से ||
मनुष्य ने अपने कर्म
पौरुष से ऐसे – ऐसे अतिविशिष्ट कार्य किये हैं जिनकी कल्पना भी नहीं की जा सकती
| कवि दिनकर मानते हैं
कि प्रकृति भी मानव की कर्म प्रधानता के आगे सदा झुकी है | मनुष्य के भाग्य की
इसमें कोई विशेष भूमिका नहीं रही है |
श्री अनिल कुमार गुप्ता ( इस लेख के संकलनकर्ता ) पंक्तियों
के माध्यम से लिखते हैं :-
“रचते हैं वे भाग्य स्वयं का, अपने कर्म बल से “
संकल्प कर्म को लिए जी रहे, नहीं इतराते भाग्य पर वे ”
उपरोक्त पंक्तियों का
भी गहन विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि “श्री अनिल कुमार गुप्ता “ इन पंक्तियों के माध्यम से कर्म को जीवन का संकल्प समझने वाले मानव
स्वयं अपने भाग्य को रचते हैं | वे कर्महीन न होकर कर्मपथ पर अग्रसर होते हैं |
वीर शिवाजी ने अथक
परिश्रम कर जो सफलता हासिल की उस सफलता को उनका आलसी और कर्महीन पुत्र संभालकर
नहीं रख पाया | झांसी की रानी का पराक्रम, उनकी वीरता और साहस के साथ – साथ
कर्मप्रधानता की ओर इंगित करता है |
यहाँ हम इस विषय पर भी
अवश्य गौर करें कि विद्यार्थी जीवन में सफलता की ऊँचाइयों को छूने में परिश्रम की
भूमिका सबसे अधिक होती है | कहावत है जितना गुड़ डालोगे उतना ही मीठा होगा अर्थात
जितना ज्यादा परिश्रम व अनुशासन होगा उतनी ही ज्यदा सफलता की प्राप्ति होगी |
( इस
लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया )
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