Wednesday 14 December 2016

आख़िर किस दिशा में अग्रसर हो रहे हैं हम ? द्वारा अनिल कुमार गुप्ता (पुस्तकालय अध्यक्ष - के वी फाजिल्का)

आख़िर किस दिशा में अग्रसर हो रहे हैं हम ?

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
के वी फाजिल्का

वर्तमान भारतीय सामाजिक परिवेश का बारीकी से अध्ययन करने पर ज्ञात होता है कि यहाँ लोग स्वयं को सुरक्षित महसूस नहीं करते | इसके कई कारण हो सकते हैं मुख्यतया – न्यायपालिका में लोगों का अविश्वास . पुलिस विभाग का ढुलमुल रवैया, कानूनी प्रक्रिया का लम्बा खींचना, स्वास्थ्य सेवाओं से निम्न एवं गरीब वर्ग का वंचित होना, दबंगों द्वारा दलितों का शोषण, भ्रष्टाचार , स्त्री असुरक्षा (बलात्कार की घटनाओं में हो रही वृद्धि ), क्षेत्रीयतावाद, लोगों में सहिष्णुता का अभाव, नक्सलवाद, माओवाद, ऑनर किलिंग, आतंकवाद, हॉरर किलिंग , अपराधों का अनियंत्रिकरण आदि  - आदि बहुत से ऐसे विषय हैं जिन्होंने हम भारतीयों के मन में असुरक्षा की भावना उत्पन्न की है |

                हमारे देश के “so called” नेता लोगों के मन में राष्ट्रवाद की भावना को कूट – कूट कर भरना चाहते हैं  किन्तु इसका अभाव सबसे ज्यादा उन्ही में देखा जाता है |  ये कुर्सी के लिए एक दूसरे को किसी भी हद तक नीचा दिखाने से नहीं चूकते | इनकी इस भावना को हम संसद भवन के माध्यम से कई बार महसूस कर चुके हैं | असल राष्ट्रवाद का नाज़ार ये नेता ही पेश करते हैं जब ये एक दूसरे पर आरोपों की बौछार करते हैं और ये भूल जाते हैं कि इन्हीं से होकर राष्ट्रवाद देश के गलियारे में आसन ग्रहण करता है | देश की परवाह करने वाले कोई और ही होते हैं जो देश की सीमा पर पल  - पल जीवन की जंग लड़ते हैं |

                                        जिन समस्याओं का यहाँ जिक्र किया गया है उनमे से बहुत से विषय तो ऐसे हैं जिनका इलाज़ आज और सभी संभव है | यदि इस देश में सऊदी अरब जैसे देशों की तरह से क़ानून व्यवस्था लागू कर दी जाए | तो मुझे नहीं लगता किसी भी प्रकार का अपराध इस देश को छू सकेगा  और जहां कोई भी व्यक्ति अपराध करने से पहले सौ बार सोचेगा |
                           “भय बिन प्रीति न होई “

ये विचार हम सबको पता है और हम जानते हैं कि बच्चों में भी अनुशासन की भावना को बल देने के लिए कई बार हम भय यानी डर का सहारा लेते हैं | अपराधी सभी जन्म से अपराधी नहीं होते , परिस्थितियाँ उन्हें मजबूर कर देती हैं किन्तु हम यह भी जानते हैं कि स्वयं पर नियंत्रण आवश्यक है | जो व्यक्ति स्वयं को नियंत्रित नहीं कर पाता उसके द्वारा अपराध की संभावनाएं बढ़ जाती हैं | एक बात और भी आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ कि बहुत से ऐसे भी अपराधी देखे गए हैं जो आदतन अपराधी बने रहना चाहते है और सजा के बाद भी वे अपराध करने से नहीं चूकते | ऐसे अपराधियों पर लगाम लगाना आवश्यक है |  अतः आवश्यक है कि इस प्रकार के चरित्रों को नियंत्रित करने के लिए भय का सहारा लिया जाए और स्वस्थ समाज की स्थापना की और कदम बढ़ाया जाए |

                                अब हम बात करें एक ऐसे विषय की या समस्या की – बलात्कार | आये दिन हो रही बलात्कार की घटनाओं ने मानव संवेदनाओं को भीतर तक झिंझोड़कर कर रख दिया है | विकृत मानसिकता को लेकर जी रही युवा पीढ़ी स्वयं पर नियंत्रण रख पाने में असमर्थ पा रही है | आये दिन की हो रही हज़ारों निर्भया जैसी घटनाओं ने न्याय व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है | आख़िर कब होगा एक स्वस्थ समाज की स्थापना का आगाज़ | मुश्किल तो तब होती है जब पीड़िता को न्याय के साथ – साथ सामाजिक सहयोग नहीं मिलता | ज्यादातर मामलों में लड़की को ही दोषी करार कर दिया जाता है | कई बार तो स्थिति कुछ और होती है किन्तु लड़के को जवाबदार बना दिया जाता है | कभी – कभी तो तह देखा गया है कि अपनी व्यक्तिगत रंजिश की वजह से भी ऐसे आरोप लगा दिए जाते हैं |

                                रिश्तों में अविश्वास ने एक विषम परिस्थिति को जन्म दिया है | आज मनुष्य स्वयं में ही इतना गुम सा हो गया है कि उसे बाजू में रह रहे पड़ोसी का हाल जानने का समय भी नहीं है | समय – असमय की हो रही घटनाओं ने हमें भीतर तक हिला कर रख दिया है | आज के रिश्ते भ्रामक हो गए हैं | बड़े  - छोटे का लिहाज़ नहीं रहा | हर एक व्यक्ति अवसर की तलाश में रहता है | भीतरी कुंठा को शांत करने के लिए वह नए – नए रास्ते अपनाता रहता है | कभी – कभी तो उसे अपने सम्मान व स्वाभिमान की भी परवाह नहीं होती | केवल दौड़ रहे हैं , भाग रहे हैं , मंजिल की खबर नहीं | क्या कर रहे हैं ? इसका भी ज्ञान नहीं | स्वयं के उद्धार का कोई प्रयास नहीं | चाचा  - भतीजी , मामा – भांजी  के रिश्ते भ्रामक हो गए हैं | आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है ? यह गहन विश्लेषण का विषय है | जरूरत है तो बस सचेत रहने की |

                                अब बात करते हैं राष्ट्रवाद की | दो राज्यों के बीच प्राकृतिक संसाधनों के बंटवारे को लेकर चलती जंग , चाहे वह नदी के पानी को लेकर दक्षिण भारत के दो राज्यों की हो या फिर नहर के पानी को लेकर पंजाब और हरियाणा के बीच चल रहा विवाद |  आख़िर इस विवाद की जड़ में क्या है ? यह तो आप भी जानते हैं राजनीति से बढ़कर इस देश में कुछ भी नहीं | जब दो राज्य आपस में मिलकर देश के बारे में नहीं सोच रहे तो फिर जन सामान्य से राष्ट्रीय भावना की उम्मीद कैसे की जा सकती है | | देश के प्रतिनिधि जब संसद में एक दूसरे पर कुर्सी फेंकते नज़र आते हैं तब उनके भीतर का राष्ट्रवाद उभर कर सामने आता है | राजनीतिक प्रपंचों में उलझता राष्ट्रवाद , इस विचार ने देश में क्षेत्रीयतावाद को बढ़ावा दिया है | क्षेत्रीय समस्याओं से ऊपर देश हित में सोचने का कार्य सभी राज्यों को मिलकर करना होगा | दूसरी और हम देखते हैं कि काश्मीर की समस्या में घी डालने का काम वहां के ही नेता कर रहे हैं जिन्हें बोलते वक़्त यह भी ध्यान में नहीं रहता कि वे क्या कह रहे है और इसका क्या असर देश पर पड़ सकता है | हमारे नेता समस्याओं को उलझाने में ज्यादा विश्वास रखते हैं न कि समस्या का निपटारा करने में | हम जातिवादी ज्यादा हो रहे हैं बजाय राष्ट्रवादी होने के |

                                दबंगों और दलितों के बीच की दूरी सदियों से चली आ रही है और दलितों का शोषण , दबंगों की अमानवीय सोच का परिणाम है | सभी को सम्मानपूर्वक जीने का आधिकार है ऐसा हमारा संविधान भी कहता है | आर्थिक सम्पन्नता किसी दूसरे व्यक्ति के सामाजिक एवं प्राकृतिक अधिकारों का हनन नहीं कर सकती | दलितों का शोषण किया जाना और उस पर न्यायपालिका का संरक्षण न मिल पाना बेशक एक विषम परिस्थिति उत्पन्न करता है | समानता का अधिकार सभी को है किसी व्यक्ति विशेष को राजनैतिक आधार पर सम्पन्नता के आधार पर संरक्षित करने का अधिकार किसी को नहीं है | सामाजिक असमानता और शोषण ने ही जिन विषयों को जन्म दिया है उनके नाम हैं नक्सलवाद, माओवाद आदि – आदि | ये विषय देश के विकास में आज बाधक बन गए हैं | जब आतंकवाद को रोकने के लिए सर्जिकल स्ट्राइक का सहारा लिया जा सकता है तो देश के भीतर नक्सलवाद और माओवाद को रोकने के लिए क्यों नहीं | जब किसी चैनल के पत्रकार इन नक्सल्स तक पहुँच सकते हैं तो हमारी सेना क्यों नहीं |

                                देश के विकास में एक और मुख्य बाधा है भ्रष्टाचार | विकसित देशों की नक़ल करने में हम माहिर हैं किन्तु केवल उन चीज़ों की जो हमारे जीवन को और आसान बना दे,  दिखावे की निगाह से | सीखने की बातें हम पश्चिमी देशों से नहीं सीखते | अनुशासन, नियमों का पालन, राष्ट्र के प्रति समर्पण, देश के विकास में सहयोग की भावना, सरकार को सही समय पर पूरा – पूरा टैक्स देना आदि – आदि | इन सब बातों को तो हमने अपनाया ही नहीं | किन्तु सूट – बूट , smoking, बियर, थोड़ा जियो खुलकर जियो, देर रात तक पार्टियाँ (रेव पार्टी) आदि – आदि बातों को हमने अपना कर लिया और इनके लिए रास्ते भी वे जो हमें गलत दिशा में ले जाते हैं को अपनी जिन्दगी का हिस्सा बना लिया | इन सबसे हमारी अपनी छवि, समाज में स्थिति, राष्ट्र की छवि पर इसका क्या असर होगा इस बारे में कभी सोचा ही नहीं | जीवन को विलासितापूर्ण तरीके से जीना है यह विचार मन के एक कोने में जगह बना चुका है | इसी ने मनुष्य को सही मार्ग से भटका दिया है और उसे मनुष्य से पशु की श्रेणी में ला खड़ा किया है |

एक और समस्या जो हमारे समाज को खोखला कर रही है वह है अपराधों में हो रही लगातार वृद्धि | चाहे वह ऑनर किलिंग, हॉरर किलिंग , बलात्कार हो , ---------- आदि – आदि | आज जब भी न्यूज़ चैनल पर न्यूज़ देखने बैठो तो एक ही बात - अपराध, अपराध और केवल अपराध | बलात्कार को लेकर हमारी न्यायपालिका को और ज्यादा सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है | जरूरत है एक स्वस्थ समाज के निर्माण की | ऐसा समाज जहां कोई भी किसी समय निर्भय होकर आ जा सके और अपने कार्यों को निपटा सके | मानवाधिकार की आड़ में अपराधियों पर दया दिखाना एक ऐसे समाज की और अग्रसर होना है जहां केवल अन्धेरा ही अँधेरा है उजाले का कोई निशाँ नहीं | बलात्कार की घटनाओं ने पूरी दुनिया में भारत की छवि को धूमिल किया है | इस गतिविधि को प्रेरित करने का काम किया है इन्टरनेट पर उपलब्ध अवांछनीय सामग्री ने | जिसने स्त्री को भोग की वस्तु की के साथ – साथ मनोरंजन की वस्तु घोषित किया है | जहां प्राकृतिक कुछ भी नहीं केवल अप्राकृतिक कृत्यों की भरमार है | आज की युवा पीढ़ी के हाथों में चौबीसों घंटे मोबाइल और उस पर इन्टरनेट , बचने की कोई गुंजाइश नहीं | ग्लोबल स्तर पर आवश्यकता है कि इस प्रकार के कंटेंट्स ही इन्टरनेट पर अपलोड न हों पायें और यदि अपलोड हो भी जाते हैं तो उन्हें हाईड कर दिया जाए जिससे उन्हें कोई डिटेक्ट न कर पाए | कुछ terms भी फिक्स कर दी जाएँ जो सर्च इंजन से होकर न गुजर पायें | और इस प्रकार की अपलोडिंग को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाए |

                        गर हम कुछ नसीहत की बात करें तो आज आवश्यकता इस बात की है कि हमारे देश के “so called”  नेता अपनी व्यक्तिगत आकांक्षाओं से बाहर निकल देश के बारे में सोचें | वे उन लोगों के बारे में सोचें जिन्हें दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही | जो पैसा स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च करना चाहिए उसे बेकार के विषयों पर खर्च न कर लोग्फों के स्वास्थ्य पर खर्च करें | मूलभूत आवश्यकताओं पर ध्यान देना जरूरी है न कि वोट बैंक के चक्कर में Lolly Pop योजनायें लाकर लैपटॉप , स्कूटी , साइकिल या फिर जन्म और शादियों के नाम पर चेक बाटें |  बजाय इसके संसाधन जुटाएं , विद्यालय भवन बनाएं, विद्यालय तक पहुँच मार्ग विकसित करें | स्वच्छ पानी, बिजली एवं आधुनिक शिक्षा संसांधनों की व्यवस्था करें | शिक्षा संस्थानों का विस्तार कर उसे गाँवों तक पहुंचाएं | प्रत्येक दो किलोमीटर के भीतर एक विद्यालय अवश्य निर्मित करें | जिससे अनावश्यक परेशानी से बचा जा सके |

          आतंकवाद की जड़ों को समाप्त करने के लिए आवश्यक है कि हम देश की जनता में देश के प्रति लगाव पैदा करें ताकि कोई भी व्यक्ति इन आतंकवादियों को संरक्षण न दे | देश की सीमा को आधुनिक उपकरणों से लैस किया जाए ताकि कोई भी आतंकी इस देश की सीमा में प्रवेश न कर सके | नयी पीढ़ी को यह सिखाया जाए कि आतंक का कोई अंत नहीं है और यह एक नासूर है जो मानव सभ्यता के लिए खतरा है | हम स्वयं को सीमा पर लगे जवानों से प्रेरित करें ताकि हम स्वं को न भटकायें| इस बात को लोग समझें कि आतंक का कोई मजहब नहीं होता और न ही आतंक ,समाज को कोई दिशा दे सकता है | आतंकवाद की जड़ में ऐसे लोग लगे हैं जिन्हें उस खुदा , उस परमात्मा से भय नहीं है | वे स्वयं को खुदा समझते हैं और इस नयी पीढ़ी को भटका रहे हैं |

                आवश्यकता है देश की न्याय व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए | शहरों को CCTV से लैस किया जाए ताकि महिला अपराधों पर रोक लगाईं जा सके |  आज आवश्यकता इस बात की है कि घर – घर संस्कृति की बातें की जाएँ और बच्चों को संस्कारित किया जाए | ये बच्चे आने वाले कल को रोशन करें और इस देश की छवि को धूमिल होने से बचाएं |  जैसा कि हम जानते हैं किसी भी देश को उसकी संस्कृति और संस्कारों से जाना और पहचाना जाता है | देश में त्योहारों के प्रति लोगों में आत्मीयता एवं विश्वास जगाया जाए | ज्यादा से ज्यादा धार्मिक अनुष्ठान किये जाएँ | राष्ट्रीय त्योहारों को पूरी श्रद्धा के साथ मनाया जाए | बच्चों को इन उत्सवों में भाग लेने हेतु प्रेरित किया जाए | देश में लोगों के प्रति विश्वास जगाया जाए ताकि लोग देश हित में अपना योगदान दे सकें |

              नक्सलवाद और माओवाद पर रोक लगाई जाए |  देश की सुरक्षा में लगे नौजवानों के हित को भी ध्यान में रखा जाए और उनके परिवारों के प्रति भी रवैया ठीक हो ऐसी कोशिश की जाए | देश में सभी के विचारों को सुना जाए और देश हित में उनका प्रयोग किया जाए | कोशिश यह हो कि देश का माहौल शांत हो और अनावश्यक विषयों पर टिप्पणी न की जाएँ | जातिवाद को विशेष महत्त्व न देकर देश हित को सर्वोपरि समझा जाए | देश के गौरव पर आंच न आये ऐसे प्रयास किये जाएँ | हमारे नेता अपनी आपसी रंजिश को दूसरे देश के सामने न परोसें जिससे हमारे देश की छवि धूमिल हो | इस बात को लोग अपने दिल से मानें कि वे एक सुरक्षित माहौल में रह रहे हैं और उनको अपने देश से प्यार है |

                                इस लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया |