परीक्षा शब्द सुनते ही
बच्चों में परीक्षा के प्रति डर पैदा हो जाता
है आखिर क्यों ?
द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
( एम कॉम , एम ए (
अर्थशास्त्र ) एम लिब , डी सी ए ,
एम ए ( अंग्रेजी साहित्य )
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय (सीमा
सुरक्षा बल) फाजिल्का
“परीक्षा शब्द सुनकर बहुत
से बच्चे मानसिक रूप से अपने आपको परेशान महसूस करने लगे हैं | आखिर ऐसा कुछ
बच्चों विशेष के साथ ऐसा होता है सभी के
साथ नहीं | आखिर क्यों ? क्योंकि ऐसा देखा गया है कि बहुत से बच्चे ऐसे होते हैं
जिन पर परीक्षा शब्द का कुछ विशेष प्रभाव दिखाई नहीं देता | न ही वे विचलित होते
हैं | जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक दैनिक गतिविधि में हम पाते हैं कि
हम प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से परीक्षण की प्रक्रिया से गुजर रहे होते हैं |
किन्तु इसका प्रत्यक्ष आभास नहीं होता | परीक्षा शब्द की मानसिक परेशानी से बचने
का सबसे सरल उपाय है कि बच्चों को बाल्यकाल से ही प्रत्येक प्रयास व उसके परिणाम
से विभिन्न चरणों के माध्यम से आभास कराया जाता है | ताकि उन्हें ये पता हो जाए कि
हर एक प्रयास की सफल परिणति का एक ही माध्यम है परीक्षण से गुजरना | यदि ऐसा होता है
तो समझिये कि बालमन इस प्रक्रिया को अपने दैनिक जीवन का हिस्सा समझने लगेगा | और
उसे भविष्य में किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होगी | इस कार्य में बच्चे के
माता – पिता , दादा – दादी, बड़े भाई – बहिन , दोस्त महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते
हैं | “डर” एक ऐसा शब्द है जो किसी भी प्रयास के प्रति आपके आंशिक समर्पण की उपज है | अर्थात आपके प्रयास परिणाम
के अनुकूल नहीं हैं | कहावत है “ जब बीज बोया बबूल का तो आम कहाँ से होय “ अर्थात
जब सफल प्रयास किये ही नहीं गए तो अच्छे परिणाम की कल्पना किस तरह की जा सकती है |
विद्यार्थी इस समस्या का सामना प्रायः करते ही रहते हैं | कक्षा
परीक्षा , fa – 1 , 2, 3 ,4 , sa – 1, 2 आदि कुछ ऐसे विशेष टेस्ट्स हैं जो कि
विद्यार्थी जीवन का हिस्सा हैं | विद्यार्थी परीक्षा शब्द से डरते हैं इसके
मुख्यतः निम्नलिखित कारण हैं :-
1. बचपन
से परीक्षा के प्रति मन मस्तिस्क में परीक्षा के प्रति डर का घर बना लेना |
2. विद्यार्थी
अपनी दैनिक अध्ययन का एक निश्चित routine तैयार नहीं करते |
3. विद्यार्थी
अपनी शैक्षिक कमजोरियों को अपने शिक्षकों , पालकों व सहपाठियों के साथ share नहीं
करते |
4. घर पर
उचित शिक्षण ,अध्ययन, अध्यापन संसाधनों का अभाव भी परीक्षा के प्रति भय उत्पन्न करता है |
जैसे – शब्दकोष, विश्वकोष, सन्दर्भ पुस्तकें
, key बुक्स, व्याकरण की पुस्तकें, ( अंग्रेजी एवं हिंदी दोनों भाषाओं में
) आदि का न होना असुरक्षा की भावना उत्पन्न करता है |
5. माता –
पिता द्वारा घर पर पूर्ण सहयोग न मिलने से भी बच्चे परीक्षा के प्रति डर की भावना
से घिरे रहते हैं |
6. विद्यालय
स्तर पर बच्चों में मन मस्तिस्क से परीक्षा का डर निकलने हेतु कोई विशेष प्रयास
नहीं किये जाते | जैसे – Educational Counselor” के
माध्यम से, शिक्षकों के माध्यम से बच्चों के मन से यह डर निकाला जाए |
7. बच्चों
की नोटबुक का complete न होना भी बच्चों के मन में एक प्रकार का डर पैदा करता है |
8. परीक्षा
पूर्व बच्चों की counseling न किया जाना भी एक समस्या है | चाहे वह घर के स्तर पर
हो या फिर विद्यालय स्तर पर |
9. समय –
समय पर बच्चों को उनके द्वारा किये गए प्रयासों के प्रति प्रोत्साहित न करना भी इस
डर को और बढ़ाता है |
10.
समय प्रबंधन के महत्त्व के प्रति
बच्चों को वाकिफ न करना भी एक गंभीर समस्या है |
11.
प्रश्नपत्रों में difficulty level
भी ज्यादा होना बच्चों के मन में परीक्षा के प्रति डर पैदा करता है |
12.
एक निश्चित time table का न होना
भी पढ़ाई को बहुत अधिक प्रभावित करता है |
उपाय :- परीक्षा
के प्रति बच्चों के मन में जो डर व्याप्त रहता है उसे यूं ही नहीं टालना चाहिए |
अपितु इसे गंभीरता से लेकर बच्चे की मदद करना चाहिए | ताकि वह अपने आपको भविष्य के
लिए तैयार कर सके | और अपने सपनों को साकार कर सके | कुछ महत्वपूर्ण सुझाव यहाँ
आपकी मदद कर सकते हैं :-
1.
बच्चों के लिए घर पर सभी आवश्यक
पाठ्य सामग्री की व्यवस्था की जाए ताकि बच्चे को पढ़ाई के समय किसी भी परेशानी का
सामना न करना पड़े | और बच्चे को किसी प्रकार का अभाव महसूस न हो |
2.
बच्चों के मन में परीक्षा शब्द के
भय को बचपन से ही दूर कर उसे इस दैनिक जीवन का हिस्सा बना दिया जाए तो अच्छा है |
3.
बच्चों को पालकगण बचपन अर्थात
नर्सरी से ही पढ़ाई में सहयोग करें | और उसकी कमियों का मूल्यांकन कर उसे दूर करने
का प्रयास करें |
4.
बच्चों को बचपन से ही एक routine
के अंतर्गत पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए |
5.
बच्चों को sincere study &
time management के प्रति जागरूक किया जाए ताकि बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ सके |
6.
बच्चों के भीतर मन में कसी प्रकार
का डर है तो उसके लिए बेहतर हो कि educational counselor का मार्गदर्शन प्राप्त
किया जाए |
7.
बच्चों को exam fear पर आधारित
motivational films , video’s दिखाएँ ताकि इस डर को कम किया जा सके |
8.
पालक बच्चों को उसके home work and
daily study routine में सहयोग करें |
9.
बच्चा जब भी पढ़ाई में कुछ अच्छा कर
दिखाए तो उसकी प्रशंसा अवश्य करें | इससे वह प्रोत्साहित तो होता ही है साथ ही
उसका आत्मविश्वास भी बढ़ता है |
10. शिक्षकों
से भी गुजारिश है कि वे CBSE के CCE concept को ध्यान में रखते हुए अलग – अलग
बौधिक स्तर के बच्चों के हिसाब से difficulty level को प्रश्नपत्र का हिस्सा बनाएं
|
11. परीक्षा
पूर्व सभी विद्यालयों में यह सुनिश्चित किया जाए कि सभी बच्चों को मार्गदर्शन दिया
गया या नहीं और उनकी कमियों को दूर करने का प्रयास किया गया की नहीं | शिक्षक भी
प्रश्पत्र को लेकर हमेशा positive mind से अपना योगदान दें |
12. विद्यालय
व शिक्षा संस्थान समय – समय पर counseling पर workshop आयोजित करें ताकि बच्चों को
सही दिशा मिल सके |
13. परीक्षा
से पूर्व शिक्षक हमेशा model question papers की practice को classroom का हिस्सा
बनाएं | ताकि प्रश्पत्र के प्रति बच्चों के आत्मविश्वास में वृद्धि हो |
14. बच्चों
की दैनिक गतिविधियों पर पालकगणों को विशेष रूप से ध्यान में रखना चाहिए जिससे यह
पता लग सके की बच्चा पढ़ाई के प्रति इतना sincere है | या फिर वह कहीं गलत दिशा की
ओर तो नहीं जा रहा है |
15. बच्चों के मन में जिन्दगी का एक उद्देश्य जरूर
निश्चित करें और वह भी बच्चे से राय लेने के बाद कि वह जिन्दगी में क्या बनना
चाहता है और उसके ही अनुरूप आप उसे पढ़ाई के लिए प्रेरित करें |
निष्कर्ष :- उपरोक्त
बातों को यदि हम ध्यान में रखते हैं तो हम पाते हैं कि हम अपने बच्चों के प्रति
सचेत हैं और उनके उज्जवल भविष्य को लेकर चिंचित हैं | उपरोक्त उपाय इस दिशा में
मील पत्थर साबित हो सकते हैं |
( इस लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया )