Monday 3 September 2018

सद्विचार (स्वयं को गर्वित महसूस कराने की दिशा में कुछ प्रयास) द्वारा अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय सुबाथु (पूर्व के वी – सिवनी एवं फाजिल्का)


सद्विचार

(स्वयं को गर्वित महसूस कराने की दिशा में कुछ प्रयास)

द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय सुबाथु
(पूर्व के वी – सिवनी एवं फाजिल्का)

1.    मानव, स्वयं ही अपनी मुक्ति का , उद्धार का सर्वोच्च स्रोत है , दूसरा कोई नहीं |
2.    मनुष्य सबसे पहले अपने भीतर के शत्रु को पहचाने और तब तक उस शत्रु से लड़े , जब तक उस शत्रु का अंत न हो जाए |
3.    मनुष्य, अपने अधिकारों से अधिक जोर अपने कर्तव्यों पर दे | कर्तव्यनिष्ठ होकर आपको स्वयं ही आपके अधिकार प्राप्त हो जाते हैं |
4.    मानव के स्वयं के भीतर ही अंतर्निहित है एक और परम मानव , जिसका बोध हो जाने पर मानव को किसी और सत्य की अपेक्षा नहीं रहती |
5.    मनुष्य को स्वयं के बारे में जानना है तो वह “ध्यान साधना” में स्वयं को परिपक्व करे | यही एकमात्र सरल वा सुगम उपाय है |
6.    “ मैं क्या नहीं कर सकता , मैं सब कुछ कर सकता हूँ , मेरे लिए कुछ भी कार्य असंभव नहीं है “ जब इस सत्य से मनुष्य परिचित हो जाता है तब वह स्वयं को आत्मविश्वास से परिपूर्ण समझ सकता है |
7.    जीवन में “प्रार्थना” का अद्वितीय महत्त्व है | स्वयं के साथ – साथ सम्पूर्ण विश्व, प्रकृति, समाज, देश एवं धर्म  के लिए प्रार्थना की जाए तो वह अवश्य ही फलीभूत होती है | इस विचार से स्वयं को अवश्य ही पोषित करें |
8.    स्वयं को त्याग की भावना से अभिभूत कर ही हम दूसरों के कल्याण की कामना कर सकते हैं |
9.    “मौन प्रार्थना “ ही सर्वश्रेष्ठ प्रार्थना है जो आपको उस परमेश्वर के करीब लाती है |
10.                       आपका प्रत्येक सत्कर्म चाहे वह सड़क के बीच पड़ा पत्थर हटाना, किसी अंध व्यक्ति को सड़क पार कराना , किसी राहगीर को पता बताना , किसी की जाने – अनजाने मदद करना आदि – आदि , आपके जीवन को एक दिशा देता है |
11.                       प्रकृति के प्रति आपका हर एक प्रयास चाहे वह पौधारोपण के माध्यम से हो , किसी को पेड़ों को नुक्सान पहुंचाते समय रोकने से हो , आपका प्रत्येक प्रयास आपको प्रकृति के माध्यम से परमेश्वर से जोड़ता है |

12.                       आपकी प्रत्येक सकारात्मक सोच जो आपकी संस्कृति एवं संस्कारों के फलस्वरूप पल्लवित एवं पुष्पित होती है , आपको उस परमेश्वर की निगाह में सद्चरित्र के रूप में स्थापित करती है |
13.                       स्वयं को थोड़े अभावों एवं कष्टों में रखकर ही आप दूसरों को सुख दे सकते हैं |
14.                       स्वयं को खुद की निगाह में हमेशा ऊंचा बनाकर रखो और उसी के अनुरूप कर्म करो | यह विचार तुम्हें हमेशा ही सही दिशा की और अग्रसर करेगा |
15.                       स्वयं पर विश्वास करो | किसी दूसरे व्यक्ति से प्रभावित होने की जरूरत नहीं | स्वयं को इतना परिपत्व करो कि लोग तुम्हारा अनुसरण करें |

मुझे आशा ही नहीं अपितु पूर्ण विश्वास है कि उपरोक्त विचारों को पढने के बाद आप स्वयं को एक सम्पूर्ण मानव की तरह से समाज में स्थापित कर पायेंगे | आपकी कीर्ति पताका चारों दिशाओं में फैलेगी | आपके सद प्रयास दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत होंगे |

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