Saturday, 5 November 2016

क्या सपनों की भी कोई सीमा हो ? या फिर सपने कुछ ऐसे हों ?

क्या सपनों की भी कोई सीमा हो ? या फिर सपने कुछ ऐसे हों ?

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

विषय बहुत ही गहन है | इस विषय पर सरलता से कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता | बड़े   - बड़े  विषय विशेषज्ञ बच्चों को बड़े  -बड़े सपने देखने को प्रेरित करते हैं | सपने और वो भी बड़े देखना कोई गलत बात नहीं किन्तु उन सपनों को हासिल करने का मार्ग क्या हो ? इस बात की ओर कोई गौर नहीं करता |  इस बात का अवश्य ही आपके सपने पर असर पड़ सकता है | आपके चरित्र पर भी इसका अनुकूल या फिर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है | हम जानते हैं कि सपनों के लिए हैसियत मायने नहीं रखती | एक चलचित्र अदाकारा कहती हैं “ जीवन में कुछ पाने के लिए कुछ खोने को हमेशा तैयार रहना चाहिए “ अर्थात ऊपर उठने के लिए गिरना जरूरी है | किन्तु यह गिरना यदि आपके चरित्र को प्रभावित करे तो ऐसा सपना देखना बेमानी है और खुद से धोखा करना है |

                        बड़े सपनों के लिए सही मार्ग का चयन अतिआवश्यक है | बड़े सपनों तक पहुंचना , उन्हें हासिल करना हर एक के बस की बात नहीं है | इसलिए हो सके तो अपनी चादर के अनुसार पैर पसारा जाए तो अच्छा है | मैं आपको हतोत्साहित नहीं करना चाहता किन्तु यह कहना चाहता हूँ कि सपनों की भी सीमा होनी चाहिए | और इसलिए भी होना चाहिए क्योंकि जीवन की चारित्रिक विशेषता को जीवंत बनाये रखने का यही एकमात्र सरल व सुगम उपाय है |

                  दूसरों  को बिना हानि पहुंचाए , दूसरों को बिना रौंदे , किसी दूसरे को बिना कष्ट दिए , जो स्वप्न साकार किये जा सकते हैं उन्हें अवश्य देखना चाहिए | अक्सर देखा गया है कि सपने तो बड़े देख लिए जाते हैं किन्तु उन्हें हासिल करने के लिए जिस मार्ग का चयन किया जाता है वह मनुष्य की सामाजिक एवं चारित्रिक छवि को पूरी तरह से निगल जाता है | मनुष्य के सपने चूर  - चूर हो जाते हैं | वह स्वयं को संभाल नहीं पाता | आज परिस्थितियाँ पूरी तरह से परिवर्तित हो गयी हैं | आज स्वयं को स्थापित करने के लिए काफी जद्दोजहद करनी पड़ती है | ऐसे में बड़े  - बड़े सपनों को हासिल करने के लिए छोटे  - छोटे सपनों से होकर गुजरना होता है | धीरे  - धीरे सीढियां चढ़कर खुद को संयमित रखते हुए ही उत्कर्ष की राह पर अग्रसर हुआ जा सकता है |

                  आज की युवा पीढ़ी की सबसे बड़ी समस्या है-  कम समय में कम प्रयासों से मंजिल प्राप्त करना,  फिर चाहे इसके लिए कोई भी मार्ग क्यों न अपना लिया जाये | मानव की सबसे बड़ी पूँजी उसका अपना चरित्र है और सामजिक प्रतिष्ठा जो उसे राष्ट्र की धरोहर साबित करता है , को अपने सपनों की पूर्ति के समय इन मानदंडों को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए | जीवन में संयम और शान्ति से बड़ी कोई प्रतिभूति नहीं है | संपत्ति नहीं है |  जो मानव को उनके चरम सुख की अनुभूति करा सके | ये विलासितापूर्ण जीवन, ये भौतिक सुख आपके जीवन में आध्यात्मिक उत्कर्ष की प्राप्ति में बाधा साबित हो सकते हैं | अतः अपने सपनों में आध्यात्मिकता की सुगंधि का फ्लेवर जरूर छिड़क कर देखें | जीवन का उद्देश्य , जीवन के सत्य को समझना , जीवन के अंत के चरम सुख को प्राप्त करना है | यही जीवन का सबसे बड़ा सपना होना चाहिए , न कि भौतिक जगत के समंदर में अपने जीवन की आहुति डाली जाए | स्वयं को जीवन बनाये रखना , समाज व धर्म के कल्याण हित कार्य करना, स्वयं को समाज व राष्ट्र की धरोहर साबित करना ही जीवन का प्रमुख सपना व उद्देश्य या कह सकते हैं मंजिल होनी चाहिए |

                              स्वयं को दूसरों के लिए आदर्श रूप में स्थापित कर सकें | दूसरों को दिशा दे सकें | दूसरों के जीवन को प्रत्यक्ष रूप से प्रेरणा  के स्रोत के रूप में स्वयं को स्थापित कर सकें | एक ऐसा व्यक्तित्व हो सकें जो सदियों हमारी उपस्थिति का आभास करा सके | इस दिशा में माता  - पिता महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं | वे बचपन से ही ऐसे संस्कारों के बीज बच्चों में बोयें जो कि बच्चों को भौतिक सुख की बजाय आध्यात्मिक सुख प्राप्ति की ओर मुखरित कर सके | जीवन का लक्ष्य स्वयं का उद्धार होना चाहिए न कि भौतिक जगत का विस्तार |

                              स्वयं को बंधन में बांधें , संयम का पालन करें | आवश्यकताएं , अभिलाषाएं विशेष तौर पर भौतिक जगत के प्रति कुछ कम की रखें | स्वयं को आध्यात्मिक उत्कर्ष की ओर ले जाएँ | आध्यात्मिक विकास के मार्ग के सपनों की कोई सीमा नहीं होती | और न ही यह पतन का कारण बनता है | दूसरी ओर भौतिक लालसाओं के सागर में डूबने से मानव अपने पतन और अपने अंत को प्राप्त होता है | अतः आप आध्यात्मिक अभिनन्दन मार्ग की ओर प्रस्थित हों यही मेरी शुभ कामना है |


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