Sunday, 19 June 2016

आखिर किशोर शिक्षा इतनी आवश्यक क्यों है ? द्वारा अनिल कुमार गुप्ता पुस्तकालय अध्यक्ष केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

आखिर किशोर शिक्षा इतनी आवश्यक क्यों है ?

द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता

पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

किशोरावस्था अर्थात उम्र का वह पड़ाव जहां किशोर मन पूरी तरह से परिपक्व नहीं होता | उम्र के इस पड़ाव में किशोर मन में उथल – पुथल चल रही होती है | कुछ कर गुजरने का जूनून किन्तु अनुभव की कमी एवं उचित मार्गदर्शन का अभाव उन्हें सही राह से भटका सकता है | इस अवस्था में किशोर तन में हो रहे जैवीय (biological ) शारीरिक परिवर्तन का सीधा – सीधा असर उसके किशोर मन पर पड़ता है | प्रशों का एक समंदर सा मन में उथल – पुथल मचा रहा होता है | किन्तु उचित मार्गदर्शक का अभाव किशोर मन की प्रश्न रुपी उत्कंठा को शांत नहीं कर पाता | इस अवस्था में किशोर अपने आसपास के दोस्त या जिन पर वह भरोसा करता है उनसे प्रश्नों के समाधान की उम्मीद करता है | किन्तु उसे इस बात का ज्ञान नहीं होता कि प्रश्नों के उत्तर या समाधान उसने प्राप्त किये हैं वे उसे सही दिशा में ले जाते हैं या नहीं |  कई बार तो शंका वश “कि दुनिया क्या कहेगी” या फिर “ कोई क्या सोचेगा” जैसे प्रश्नों में उलझकर अपनी उत्कंठाओं को दबाने पर विवश हो जाता है |
                 किशोर मन बहुत ही चंचल स्वभाव का होता है जिसे बस में करना उतना आसान नहीं होता | आसपास के वातावरण का अवलोकन उसके किशोर मन पर विशेष प्रभाव डालता है | जिसकी और शीघ्र आकर्षित हो जाना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है | इस किशोर अवस्था में किशोर मन सुबह से शाम तक अलग – अलग लोगों के बीच होता हैं | घर पर माँ बाप भाई बहन , दूसरी ओर विद्यालय में सहपाठियों के बीच , शिक्षकों के बीच एवं खेल के समय आस पड़ोस के बच्चों के बीच | इन अलग –अलग परिस्थितियों में कई बार ऐसी छोटी – छोटी घटनाएं घट जाती हैं जिनका सीधा – सीधा प्रभाव किशोर मन पर पड़ता हैं | इन अलग – अलग परिस्थितियों से उपजे प्रश्नों का एक अंबार सा उसके मन मस्तिष्क में तैयार हो जाता है | इन प्रश्नों के बीच वह घुटा – घुटा सा रहता है | वह खुलकर किसी से बात भी नहीं कर पाता |
                 आज के वर्तमान सामाजिक परिवेश में किशोर कुछ और ही विशेष समस्याओं का शिकार हो रहे हैं | उनमे एक प्रमुख है – बच्चों के जीवन में अकेलापन | कारण यह है कि घर में आजकल एक बच्चे का चलन हो गया है | दूसरी और माता – पिता दोनों नौकरी या व्यवसाय से जुड़े हुए है जो चाहकर भी बच्चे को समय नहीं दे पा रहे हैं | बच्चा अकेलापन महसूस करने लगता है और स्वयं को व्यस्त करने के नए – नए रास्ते खोजने लगता है जो कि वह अपने माता – पिता को नहीं बताता और गलत राह पर अग्रसर हो जाता है | उसके दोस्त उसके अकेलेपन को दूर करने का साधन हो जाते हैं |दोस्तों के साथ अपनी दोस्ती को मज़बूत करने के प्रयास में वह चोरी जैसे अनैतिक कार्यों को भी अंजाम देने लगता है | किशोर की आवश्यकताएं और लालसायें बढ़ने लगती हैं | जब पानी सर से ऊपर हो जाता है तब माता – पिता को इसका भान होता है | व्यस्त माता – पिता अक्सर सोचते हैं कि सर्वसंसाधन संपन्न करने मात्र से बच्चों का भविष्य उज्जवल हो जाएगा तो यह उनकी भूल है |
                 कई बार तो छोटी – छोटी बातों को लेकर बच्चे परेशान होने लगते हैं जैसे – बच्चों को उनके मोटापे को लेकर चिढ़ाना , बच्चों की height को लेकर comment करना, कई बार तो बच्चे teachers की छोटी – छोटी comments जैसे पढ़ाई में कमजोर होने पर, hand writing ठीक न होने पर , homework न करने पर आदि –आदि बातों को लेकर भी परेशान लगते हैं | माता – पिता का दूसरे रिश्तेदारों या फिर पड़ोसी के बच्चों को डांटना |
         दूसरी ओर कम उम्र का आकर्षण आज की युवा पीढ़ी को HIV / AIDS के दलदल की ओर प्रस्थित कर रहा है | आज की पीढ़ी को इंतज़ार मंज़ूर नहीं | छोटी उम्र और सपने बड़े – बड़े | सपने  जो  शायद उन्हें सही मार्ग पर अग्रसर करेगा या नहीं इसके बारे में भी आज की युवा पीढ़ी sure नहीं है | कम उम्र में ही शारीरिक संबंधों की चाह आज की युवा पीढ़ी का शगल बन गया है | जिसके जितनी ज्यादा लड़कियों से रिश्ते वह स्वयं को उतना ही परिपक्व समझता है | किन्तु उन्हें इस बात का भान नहीं कि सामाजिक परम्पराएं, रिश्ते , रीति – रिवाज़ जिनका उल्लेख हमारे धार्मिक ग्रंथों में मिलता है उनका भी हमारे जीवन में कितना महत्त्व है |
                 किशोर मुख्यतया निम्न कारणों से दी जाती है :-
1.    बच्चों के किशोर मन को परिपक्वता प्रदान करने हेतु |
2.     बच्चों के किशोर मन में पल रही उत्कंठाओं / प्रश्नों के समाधान हेतु |
3.    बच्चों को अच्छे – बुरे का ज्ञान कराने हेतु |
4.    बच्चों को मुश्किलों और कठिनाइयों में भी किस तरह स्वयं को संभाला जाए , इसकी शिक्षा दी जाती है |
5.    बच्चों को किशोरावस्था दौरान उत्पन्न होने वाली समस्याओं और उनके समाधान से अवगत कराना |
6.    बच्चों को मन में सकारात्मक सोच का विकास करना |
7.    बच्चों को सामाजिक बुराइयों से अवगत कराना व् उनके दुष्परिणामों से अवगत कराना |
8.    बच्चों को भूलवश होने वाली समस्याओं से अवगत कराना |
9.    बच्चों को स्वयं से परिचित कराना |
10.                       बच्चों को यह बताना कि जीवन कितना अमूल्य है |
11.                       बच्चों को सही मार्ग की ओर प्रस्थित करना |
12.                       बच्चों को शारीरिक शिक्षा प्रदान करना |
13.                       बच्चों किशोरावस्था के दौरान Nutrition के बारे में जानकारी देना |
14. बच्चों को gender sensitization के बारे में जानकारी देना |
15. किशोर बच्चों को gender based discrimination के प्रति सचेत करना और दोनों ही gender के लिए समान opportunities के लिए जागृत करना |
16. किशोर बच्चों को sex, AIDS,HIV आदि विषयों की महत्ता की जानकारी देना |
17. बच्चों को drug abuse के प्रभाव के बारे में बतलाना व उसके परिणामों से अवगत कराना |
18. निराशा के क्षणों को पूर्ण आशा में किस तरह बदला जाए |
       उपयुक्त प्रमुख कारण किशोर शिक्षा का अहम हिस्सा हो सकते हैं | आज कि युवा पीढ़ी का short temper होना, छोटी –छोटी सी बातों को दिल से लगा लेना , छोटे – छोटे सपने भी न पूरे होने पर ज़िन्दगी के साथ खेलना , बहकावे में आ जाना , show off करना, मनोरंजन के लिए गलत दिशा में चले जाना और कभी – कभी तो adventure के नाम पर भी बच्चे गलत काम करने लगते हैं | सामाजिक संबंधों को अस्वीकार करना , कम उम्र में date पर जाना , आवश्यकता से अधिक ख़र्च करना ,ट्रेफिक नियमों को तोड़ना , कम उम्र में सेक्स गतिविधियों में लिप्त होना , बड़ों का तिरस्कार व अनादर करना आदि – आदि बहुत से ऐसे विषय हैं जो कि बच्चों के संज्ञान में लाना अति आवश्यक है | गलती , भूल और जान बूझकर किये जाने वाले अपराधों के बीच का अंतर समझाना किशोर शिक्षा का उद्देश्य है |
किशोरावस्था के दौरान शरीर की विशेष देखभाल भी किशोर शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य है | किशोर बच्चों को किशोर शिक्षा के माध्यम से समझाया जाता है कि उनका :-
1.    Peers के साथ किस extent तक relation होने चाहिए |
2.    Siblings के साथ किस तरह से व्यवहार किया जाए |
3.    घर के elders के प्रति रवैया क्या हो |
4.    जहां पढ़ाई कर रहे हैं वहां दूसरे students के साथ कैसा व्यवहार हो |
5.    स्कूल / कॉलेज के Teachers के प्रति क्या व्यवहार हो |
6.    स्कूल लाइफ / किशोरावस्था में discipline , sincereness का क्या रोल है |
7.    किशोरावस्था काल के दौरान स्टडी का क्या importance  क्या है |
8.    रिश्तेदारों के बीच अपनी छवि कैसे सुन्दर बनाई जाए |
9.    सामाजिक कार्यों में किशोर का योगदान किस स्तर तक हो |
10.                       राष्ट्र के प्रति समर्पण की भावना के विकास हेतु किस – किस रूपों में सहयोग दिया जा सकता है |
11.                       रचनात्मक लेखन , संगीत , खेलकूद , पुस्तकों को किस तरह किशोरावस्था के दौरान बेहतर मित्र के रूप में विकसित किया जाए |
12.                       स्वयं को किस तरह व्यस्त रखें , वह भी स्वस्थ पर्यावरण में |
13.                       किशोरावस्था दौरान hobby को जरूर develop करें जो कि भविष्य में जीवकोपार्जन का हिस्सा हो सके |
14.                       Multimedia के प्रभाव से स्वयं को किस तरह बचाकर रखा जाए इस बात पर जरूर जोर दें |
उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर किशोर अपने बेहतर जीवन की ओर अग्रसर हो सकते हैं |
             वर्तमान सामाजिक परिदृश्य की कुछ घटनाओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करा चाहूंगा :-
1.     एक छात्र जिले में बोर्ड exam में प्रथम आता है | दूसरे सत्र में वही छात्र द्वितीय स्थान प्राप्त करता है | इसके बाद भी वह छत्र आत्महत्या कर लेता है | इसे आप क्या कहेंगे ?

2.    एक छात्र को दो विषयों में supplementry आ जाती है | बच्ची डॉक्टर बनने की इच्छा रखती है | exam से पूर्व ही वह ग्लानीवश आत्महत्या कर लेती है |

3.    मोबाइल का प्रभाव से देखिये आजकल सेल्फी लेना आम बात है एक वाटर पॉइंट पर बाप - बेटा दोनों किनारे खड़े होकर सेल्फी लेने लगते हैं पैर फिसल जाने से दोनों पानी में गिर जाते हैं और उनकी मृत्यु हो जाती है | इसे आप किस रूप में लेना चाहते हैं |

4.    एक बच्चे की कक्षा बारहवी में supplementry आ जाती है | अपने आपको कमरे में बंद कर लेता है सारे प्रयास विफल हो जाते हैं | ऐसी स्थिति में आप क्या करेंगे |

5.    बच्चे के माता पिता उसे अत्यधिक पढ़ाई के लिए force करते हैं | बच्चा घर छोड़कर भाग जाता है |   

6.    pocket money न मिलने पर बच्चा चोरी करने लगता है |

7.    बच्चे के वजन को लेकर comment बच्चा बर्दाश्त नहीं कर पाता |

8.    बच्चे के मोटापे को लेकर  comments को बच्चा ignore नहीं कर पाता |

9.    माता – पिता के झगड़ों से बच्चा depression में चला जाता है |

10.                        कई बार तो dressing सेंस को लेकर भी भी बच्चे अपने आपको comfortable महसूस नहीं करते |

उपरोक्त सभी बातों को यदि हम गौर से देखें तो हम पाते हैं कि ज्यादातर मामलों में गलती माता – पिता की ओर से होती है जो बच्चे के भीतर बचपन से ही ऐसे संस्कार develop नहीं करते जो बच्चे को समस्याओं से बाहर लाने में मदद कर सके | बच्चे को हर परिस्थिति में स्वयं को नियंत्रित करना आना चाहिए इस बात को माता – पिता को अवश्य समझना चाहिए | बच्चे को आसपास के वातावरण में अपने आपको ढालना सिखाना जरूरी है | छोटी – छोटी बातों को कैसे ignore किया जाए इस बात से बच्चे को अवगत कराएं |
बच्चे को समय – असमय सही मार्गदर्शन मिलते रहना चाहिए | इसके लिए शिक्षकों को भी अपना रवैया थोड़ा बदलना होगा | एजुकेशनल counsellors इस क्षेत्र में विशेष भूमिका निभा सकते हैं | समय – समय पर schools में बच्चों के लिए counselling workshops आयोजित किये जाने चाहिए |
आशा है आपको मेरा यह प्रयास अवश्य प्रेरित आएगा | आइये मिलकर बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए कुछ प्रयास करें |

           

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