किशोरावस्था में किशोर बड़ों की बातों को गंभीरता से क्यों
नहीं लेते ?
द्वारा
अनिल कुमार गुप्ता
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का
किशोरावस्था अर्थात् 10 वर्ष से
लेकर 19 वर्ष की आयु के बीच की अवस्था जिसमे शारीरिक के साथ – साथ मानसिक स्तर पर
होने वाले परिवर्तन इस बात के लिए विशेष तौर पर जिम्मेदार होते हैं | जो कि किशोर
मन में एक अलग प्रकार की सोच पैदा करते हैं | जिसके कारण किशोर मस्तिष्क आसपास के
वातावरण से प्रभावित होने लगता है | इस अवस्था में किशोर स्वयं की बातों को , स्वयं
के निर्णयों को ही सर्वोपरि मानकर चलता है | या फिर उसके आसपास के लोग जिनसे वह
प्रभावित होता है उनकी बातों को, विचारों को सत्य मानकर उन्हें अपने जीवन का एक
अभिन्न अंग बना लेता है |
किशोर
अवस्था वह अवस्था है जहां किशोर मन में एक प्रकार का आंतरिक संघर्ष चलता रहता है
| जो उसे बड़े होने का आभास तो करता ही है
साथ ही उसके मन में एक बात घर कर जाती है कि उसके स्वयं के निर्णय ही सर्वोपरि हैं
| वह चाहे - अनचाहे दूसरों की बातों को
नज़र अंदाज़ करने लगता है | चाहे वे बातें उसके भविष्य को उज्जवल बनाने के उद्देश्य
के हित से कही जातीं हों | एक बात जो विशेष तौर पर देखी जाती है कि जन बातों से
किशोर बालक को रोका जाता है वही बातें उसे अच्छी लगती हैं चूंकि उन बातों को वे
अपने आसपास के दोस्तों व वातावरण से एवं अवलोकन के माध्यम से गलत दिशा से लेकर
अर्जित करते हैं | इस अवस्था में शारीरिक ऊर्जा बहुत अधिक होती है किन्तु उन्हें
इस ऊर्जा का सही दिशा में प्रयोग करने का ज्ञान नहीं होता जिससे वे दिशा भ्रमित हो
जाते हैं | और कई बार तो ऐसे निर्णय ले लेते हैं जिन पर उन्हें आजीवन पछतावा करना
पड़ता है |
आज
के किशोरों से गुजारिश है कि वे अपने जीवन को मुख्य रूप से बालपन को अनुशासन से
पोषित कर , संस्कृति व संस्कारों का साथ ले , बड़ों की बातों का सम्मान करते हुए
अपने जीवन को सही दिशा में ले जाने का प्रयास करें | ताकि वे समाज और राष्ट्र का
एक अहम् हिस्सा बन सकें |
माता – पिता की भूमिका :-
बच्चों के भविष्य को सजाने व
संवारने में माता – पिता की भूमिका विशेष महत्त्व रखती है | बच्चों को सही दिशा की
ओर अग्रसर करने के लिए निम्न बिन्दुओं को ध्यान में रखकर माता – पिता अपने बच्चों
से उनकी बातों को साझा करें और उनका मार्गदर्शन करें :-
1.
माता – पिता अपनी भूमिका समझें और
बचपन से ही बच्चों के मन में संस्कृति, संस्कार और अनुशासन के बीज बोयें जो बच्चे
के व्यक्तित्व का हिस्सा हो जाएँ |
2.
बचपन से ही पढ़ाई के प्रति लगाव,
बड़ों की बातों का सम्मान, धार्मिक पुस्तकों के माध्यम से असाधारण आदर्शपूर्ण
चरित्रों की जीवन गाथा का आचमन करने की प्रेरणा दें |
3.
दूसरे धर्मों के प्रति सम्मान की
भावना का विकास जगाएं |
4.
बच्चों को स्वयं निर्णय लेने की
दिशा में अग्रसर करें |
5.
उन्हें अच्छे – बुरे का ज्ञान
कराएँ |
6.
उन्हें स्वयं पर आश्रित रहने की प्रेरणा दें |
7.
बच्चों को अर्थपूर्ण व्यस्तता का
अर्थ समझाएं |
8.
जीवन अमूल्य है , इस बात से उनका
परिचय कराएं |
उपरोक्त विचारों से यदि हम बच्चों को पोषित
करते हैं तो निश्चित ही किशोरावस्था में आने वाले क्षणिक परिवर्तनों एवं परेशानियों
का बच्चे खुद ही सामना करने में सक्षम हो जाते हैं | और स्वयं के प्रति सचेत हो
अपने जीवन को सही दिशा में अग्रसर कर पाते हैं |
शिक्षक की भूमिका :-
आइये जानें किशोरावस्था में बच्चों
के आसपास रहने वाले चरित्रों में सबसे महत्वपूर्ण कड़ी शिक्षक की ओर बच्चों के मन में यदि शिक्षक के प्रति मन में विश्वास व श्रद्धा है तो वह
किसी भी विषम परिस्थिति में मार्गदर्शन के लिए सबसे पहले अपने शिक्षक की ओर रुख
करेगा और अपनी समस्याओं का हल ढूँढने कि कोशिश करेगा | और स्वयं को सही दिशा में
ले जाकर स्वयं को नियंत्रित कर लेगा | दूसरी ओर जिन बच्चों में संस्कारों का अभाव
होता है वे चाहकर भी अपने आपको सही दिशा की ओर अग्रसर नहीं कर पाते | और बाद में
माता – पिता और समाज को इसके लिए दोष देते रहते हैं | शिक्षक निम्न बातों पर ध्यान
अवश्य दें :-
1.
बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार
करें |
2.
बच्चों में अपने प्रति विश्वास
जगाएं |
3.
स्वयं को इतना परिपक्व करें जिससे
बच्चे आपको आइकॉन या फिर रोल मॉडल की तरह स्वीकारें |
4.
बच्चों से सम्बंधित समस्याओं का
अध्ययन करें और उनके हल खोजने में सक्षम हों |
5.
बच्चों को समय – असमय आदर्शपूर्ण
चरित्रों से संबंधित प्रेरक प्रसंग अवश्य सुनाएँ |
6.
बच्चों में अच्छी पुस्तकें पढ़ने की
ललक पैदा करें |
7.
बच्चों को इस बात के लिए प्रेरित
करें जिससे वे ये जान सकें कि उनके आसपास कौन व्यक्ति भरोसे के लायक है |
सुझाव :-
किशोर
बच्चों से गुजारिश है कि किशोरावस्था के दौरान होने वाले
परिवर्तनों को स्वाभाविक प्राकृतिक परिवर्तन समझें | और इन परिवर्तनों के दौरान
कोई असहजता हो तो माता – पिता , डॉक्टर ,
मनोवैज्ञानिक या फिर अपने शिक्षक आदि से सलाह लें | और अपने जीवन को अपने सपनों की
ओर अग्रसर करें |
मेरी शुभकामनायें आपके साथ
हैं |
किशोर बच्चों के लिए यह लेख एक सराहनीय प्रयास है |
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