परमात्म स्तुति
हे दया के सागर | हे जगत के
पालनकर्ता | हे परमेश्वर | आप ही इस जगत के रक्षक हैं | आप से ही यह जगत पोषित
होता है | आप ही धर्म के रक्षक , सीमाओं से परे , परम पूज्य परमदेव , कल्याण के
चाहने वाले , मोक्ष मार्ग दिखाने वाले हैं |
आपकी
महिमा का कहीं अंत नहीं है | प्रकृति के कण – कण में व्याप्त आप परमेश्वर की हम
स्तुति करते हैं | आप प्रसन्न होते हैं तो जग हर्षित होता है |
आपके क्रोध के आगे कोई टिक नहीं पाता | राजा को रंक और रंक को राजा बनाने में आप
क्षणिक भी समय नहीं लगाते | आपका आदि , मध्य, अंत नहीं है | हम आपकी कृपा के आकांक्षी हैं | हमारे हर एक
प्रयास में , हर एक कर्म में आपकी उपस्थिति हो | हम आपकी आशा अनुरूप जीवन प्राप्त
करैं | ऎसी हमारी शुभ इच्छा है |
हम अज्ञानी आपके चरण कमलों की वन्दना करते हैं
| और आप परमेश्वर से अनुरोध है कि आप हम दीनों पर अपनी कृपा करें | हममे इतनी
चातुरी या सामर्थ्य नहीं है कि आपके गुणों का बखान कर सकें | हमारा प्रत्येक कर्म आपकी
इच्छा व अपेक्षा अनुरूप हो | हे जगदीश्वर | आपकी स्तुति करने की सामर्थ्य हममे नहीं
है | मन्त्रों का हमें ज्ञान नहीं, पूजा की विधी से हम अनभिज्ञ | हम प्राणी आपकी
किस तरह स्तुति करें | आपकी प्रसन्नता हेतु हमारे कर्म क्या हों , कैसे हों ,
प्रभु इन सबका भान आप हमें कराओ | हम
सद्विचारों से पोषित हों | कोमल हृदयी हों | आपके चरणों के अनुरागी हों | कोई भी
चीज में हमारा अनुराग न हो | हे देवों के
देव हमारे ह्रदय स्थल में जगह बनाओ | हमे मुक्ति का मार्ग दिखाओ प्रभु | हम मोक्ष
के अनुरागी हों | हमारा प्रत्येक कर्म तेरी इच्छा की परिणति हो | ऐसी हमारी भी शुभ
इच्छा है | प्रभु कल्याण करो | कल्याण करो | प्रभु कृपा करो | प्रभु कृपा करो |
No comments:
Post a Comment