आध्यात्म से आत्ममंथन या आत्म साक्षात्कार की
ओर
संकलनकर्ता
एवं सम्पादक
अनिल कुमार गुप्ता
एम् कॉम , एम् ए (अर्थशास्त्र
एवं अंग्रेजी साहित्य ) पुस्तकालय एवं सूचना विज्ञान स्नातकोत्तर ,
कंप्यूटर डिप्लोमा , एच डब्लू बी (स्काउट)
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय
फाजिल्का
आध्यात्म से आत्ममंथन या आत्म साक्षात्कार की ओर बढ़ने से
पहले आइये सर्वप्रथम हम यह जानें कि आखिर आध्यात्म क्या है ?
मूलतः
आध्यात्म शब्द अधि + आत्म शब्द के संयोजन से बना है जिसका अर्थ है आत्मा का अध्ययन
या विश्लेषण | आत्मा को पूरी तरह से समझना , जानना और उसे माध्यम से स्वयं के
उद्धार की परिकल्पना ही आध्यात्म को जानना है |
आध्यात्म
किस तरह हमारा इस समुद्र संसार से उद्धार करे | हमारे मोक्ष का कारण बने | हमारी
आत्मशुद्धि का माध्यम बने यह जानना ही आध्यात्म को जानना है | मानव जीवन को पूर्णता प्रदान करना ही आध्यात्म
का उद्देश्य है |
आध्यात्म
तत्व का विचार, आज की खोज न होकर सदियों
पूर्व ही संभव हो गया था | जब मानव स्वयं
की मुक्ति को ज्यादा महत्त्व देने लगा न कि स्वयं को भौतिक जगत से जोड़कर रखने में
उसकी रूचि थी | उसके इसी विचार ने उसे अपने बारे में सोचने को मजबूर किया | सदियों पूर्व मानव को भी आभास
था कि जीवन चार दिनों का है और उसे यूं ही व्यर्थ न गंवाकर उसकी जीवंतता के बारे
में सोचा जाए | मानव मन चूंकि चंचल होता है इसलिए इसे किस तरह अपने वश में किया
जाए इसी सद्विचार ने आध्यात्म जैसे सद्विचार को जन्म दिया | और इसी विचार ने इस
धरती को ऐसे – ऐसे संत व महापुरुष दिए जिनके योगदान को , उनकी जीवन शैली को हम
भुला नहीं सकते अपितु उनके मार्गदर्शन पर चलकर हम भी स्वयं के उद्धार के बारे में
सोच सकते हैं |
आध्यात्म के बारे में विश्व स्तर बहुत से चिंतकों,
विचारकों ने अपने - अपने विचार प्रस्तुत
किये जिनमे से कुछ को हम इस लेख का हिस्सा
बना रहे हैं :-
अल्बर्ट
आइन्स्टीन – “आध्यात्म उस असीमित सर्वोपरि आत्मा की
विनम्र स्तुति है “|
स्वामी
विवेकानंद – “ अपनी
आत्मा का आह्वान करो और देवत्व प्रदर्शित करो | अपने बच्चों को सिखाओ कि आत्मा दिव्य है और आध्यात्म
सकारात्मक है नकारात्मक प्रलाप नहीं”|
एक
हार्ट :- “आत्मा को यदि नापना है तो ईश्वर से नापना चाहिये क्योंकि
ईश्वर का धरातल और आत्मा का धरातल एक ही है “|
इस
प्रकार आध्यात्म को ही ईश्वर कह सकते हैं |
बेकन : -
“आध्यात्म
मनुष्य को पूर्ण बनाता है , तर्क उसे प्रत्युत्पन्न बनाता है और लेखन उसमे पूर्णता
लाता है | “
आध्यात्मवाद के सम्बन्ध में विचार : -
Canny, Maurice,
an encyclopedia of Religions, Delhi, 1976, p.333
“आध्यात्मवाद एक विशेष प्रकार के विश्वास के
प्रति आस्था है जो आत्मा की पृथक सत्ता को स्वीकार करता है और जीवित मनुष्य को
अपने माध्यम से प्रभावित और संचालित करता है | मृत्यु के बाद उसी की वास्तविक
सत्ता विद्यमान रहती है और वही भौतिक दृव्यों से पृथक एक शाश्वत तत्व है | यह एक
ऐसा विश्वास है कि आत्मा ही वास्तविक तत्व है | दृव्य तो ऊपर से ओढ़ा हुआ पदार्थ है
| आध्यात्मवाद , दर्शन का प्रारम्भिक रूप है | ऐसी धारणा है कि मृत्यु के बाद
मनुष्य की आत्मा शेष रहती है | वह शरीर से भिन्न तत्व है |
सेंट
कैथरीन : - “मेरी आत्मा ईश्वर है अपने ईश्वर के सिवा मैं
किसी और को नहीं मानती हूँ |“
इस
प्रकार हम निष्कर्ष के तौर पर कह सकते हैं कि ज्यादातर चिंतकों, विचारकों एवं
दार्शनिकों ने आत्मा को ईश्वर की संज्ञा दी है और इसे ही परब्रह्म, सत्य , अविनाशी
बताया है यही आध्यात्म हमारे मन में भावनात्मक
आस्था का विकास करता है | आध्यात्म प्रत्येक दूसरे मनुष्य को एक दुसरे से जोड़कर
स्वस्थ समाज का निर्माण करता है | आज आध्यात्म को लोगों ने अलग – अलग धर्मों,
मजहबों के बीच दीवार में कैद कर दिया है | यदि हम पुराणों , वेदों आदि का अध्ययन
करते हैं तो पाते हैं कि जीवन का लक्ष्य आत्म शुद्धि रहा है | जिसका मुख्य मार्ग
आत्म संयम से होकर गुजरता है | सांसारिक पदार्थों से स्वयं को परे कर उस परमात्मा
में स्वयं को लीन करना और माया मोह को भूल अपनी आत्मा के कल्याण हित सोचना और उस
पर अमल करना ही मानव जीवन का लक्ष्य रहा है |
दूसरी ओर वर्तमान सामाजिक परिवेश की ओर देखने पर पता चलता
है कि भारतीय संस्कृति व संस्कारों पर पाश्चात्य संस्कृति एवं अन्य देशों की
संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है | जिसका सबसे बड़ा
माध्यम है टी वी , इन्टरनेट, एवं सोशल साइट्स , सिनेमा, थिएटर , पब , क्लब एवं
वर्तमान सामाजिक संस्कार जहां भारतीयता का अभाव है आध्यात्मिक विचारों का अभाव है
| बच्चे से लेकर बूढ़ा सभी इसी रंग में रंगे हुए हैं | “जो दिखता है वही बिकता है “
इस कुविचार ने एक नई संस्कृति को जन्म दिया है | ऐसे चरित्र समाज में प्रचलन में आ
गए हैं | उम्र का अंतर समाप्त हो गया है | बड़े - छोटे का भेद समाप्त हो गया है |
मर्यादाएं अपनी सीमाएं लांघ रही हैं | एक
ही विचारधारा है जितना स्वयं को कैश कर सकते हो कैश कर लो | जितना बटोर सकते हो
बटोर लो ,समय का भरोसा नहीं आदि – आदि |
इस
वर्तमान परम्पराओं एवं अपसंस्कृति ने आने वाली पीढ़ी के लिए ऐसी संस्कृति का विकास
किया है जहां मानव को अपने मानव होने पर शर्म महसूस होगी | क्योंकि उसके कर्म एवं
संस्कार उन्हें मानव नहीं रहने देंगे | पश्चिमी सभ्यता की तरह मानव अपने रिश्तों
को कपड़ों की तरह बदलना शुरू कर देगा | प्रार्थना के सभी केंद्र सूने हो जायेंगे | परमात्मा स्वयं
के अस्तित्व को लेकर चिंताग्रस्त हो जाएगा | धरती पुनः आदिम युग में पहुँच जायेगी
| ये तो कुछ ऐसे विचार हैं जो भविष्य के गर्त में छुपे हुए हैं |
आइये
अब चर्चा करें वर्तमान सामाजिक परिवेश में रहते हुए स्वयं को संयमित करते हुए सही
दिशा में अग्रसर होने की और हमें अपने मानव होने पर गर्व महसूस करने की | और ऐसे
आदर्श धरा पर स्थापित करने की जो आने वाली पीढ़ी को और सदियों तक इस धरा को स्वस्थ
सामाजिक परिवेश दे सके | स्वयं को आध्यात्म से जोड़ने के लिए हमें निम्न लिखित
प्रयास करने चाहिये जो हमें दिशा दे सकें | हम जीवन के सैद्धांतिक पक्ष पर गौर
करें और कुछ प्रश्नों के उत्तर की खोज करें जैसे : -
1.
परमेश्वर क्या है ?
2.
हमारे जीवन का अस्तित्व एवं व्यक्तित्व क्या है ?
3.
मैं कौन हूँ ?
4.
आत्मा क्या है ?
5.
मैं कहाँ से आया हूँ ?
6.
यह संसार क्या है ?
7.
हमारे जीवन का उद्देश्य क्या है ?
8.
हमारे इस संसार के प्रति कर्तव्य क्या हैं ?
9.
हमारी मुक्ति के मार्ग कौन – कौन से हैं ?
10.
हमारे जीवन का लक्ष्य क्या है ?
11.
जीवन में सात्विकता का क्या महत्त्व है ?
12.
विचारों की सात्विकता क्या है ?
13.
मेरी पाँचों इन्द्रियाँ मेरे बस में हों |
14.
मोक्ष क्या है ?
15.
धरती पर भूत -
प्रेत आदि का अस्तित्व है या नहीं ?
16.
आध्यात्मिक रहस्य क्या है ?
17.
आध्यात्मिकता से जुड़े महापुरुषों का जीवन कार्यकलाप कैसा
होता है ?
18.
हमारे जीवन में नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की सार्थकता
क्या है ?
19.
हमारे जीवन में योग का महत्त्व |
20.
विभिन्न व्यवस्थाओं जैसे पूजा, होम, उपवास, जप , ध्यान,
कीर्तन आदि का जीवन में वैज्ञानिक एवं धार्मिक महत्त्व क्या है ?
21.
जीवन का वास्तविक सत्य क्या है ?
22.
आत्मा और परमात्मा का सत्य |
23.
सही जीवन जीने की दिशा क्या हो ?
24.
मेरा स्वयं पर नियंत्रण हो |
25.
जीवन में वेदों , पुराणों की भूमिका |
26.
सामाजिक एवं सांस्कृतिक अनुष्ठानों की जीवन में भूमिका एवं
उनका वैज्ञानिक एवं धार्मिक सत्य |
27.
जीवन में पर्यावरण की भूमिका एवं उसका सत्य |
28.
गुरु परम्परा का महत्त्व |
29.
जीवन में चार वर्णों की भूमिका |
30.
धार्मिक ग्रंथों का रहस्य |
31.
साधना का जीवन में महत्त्व |
32.
मानसिक शुद्धि के तरीके |
33.
शारीरिक स्वच्छता के रास्ते |
34.
आत्मा का विचरण |
35.
आत्मा का शरीर परिवर्तन |
36.
मृत्य के बाद का जीवन |
37.
पुनर्जन्म आदि -
आदि |
उपरोक्त प्रश्नों के उत्तर जानना ही आध्यात्म को जानना है |
इन प्रश्नों के उत्तर जानने के साथ – साथ स्वयं को इन सब विचारों से पोषित करना ही
आध्यात्म है | अँधेरे से बाहर निकल उजाले की ओर बढ़ना ही आध्यात्म है | स्वयं से
स्वयं की पहचान ही आध्यात्म है | सांसारिक पदार्थों से स्वयं को मुक्त कर आध्यात्म
की ओर अग्रसर होना स्वयं के साथ न्याय करना है | आत्मा शब्द की व्याख्या कर लेने
के पश्चात हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि आखिर आत्मा की शुद्धि के मार्ग
कौन - कौन से हैं ?
आत्मदर्शन
किस तरह संभव हो ? और इस आत्म तत्व की अनुभूति किस तरह की जाए ? इन सबकी अनुभूति
के लिए सर्वश्रेष्ठ मार्ग है ध्यान या समाधि | इस अवस्था में मानव स्वयं को
शारीरिक अस्तित्व से परे कर अपनी आत्मा को उस ब्रह्म में लीन कर लेता है जो कि उसके इस प्रयास का लक्ष्य होता है | और
स्वयं आत्मा ब्रह्म स्वरूप हो जाती है | इसे ही जीवन मुक्ति बोध कहते हैं | भारतीय
जीवन के चार प्रमुख तत्वों में से हम मोक्ष को ही परम कर्म की तरह स्वीकार करते हैं | जो कि जीवन का
लक्ष्य भी होता है | यही आत्म मंथन है यही आत्म साक्षात्कार की स्थिति का अनुभव
कराता है |
समाधि
और ध्यान के अतिरिक्त भी और बहुत से मार्ग हैं जो मानव को आत्म साक्षात्कार की ओर
ले जाते हैं | वे हैं – ज्ञान, कर्म और भक्ति मार्ग | इन सबका लक्ष्य एक ही होता
है | श्रीमद्भागवद्गीता हमें , निष्काम कर्मयोग की ओर प्रेरित करता है | भक्ति और ज्ञान दोनों में ही कर्मयोग का आचरण
अति आवश्यक हो जाता है |
आध्यात्म
से प्ररित साधक हमेशा ही कोशिश करते हैं कि उन्हें आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान
अर्जित हो सके | इसी को वे जीवन का अंतिम सत्य और लक्ष्य समझ जीवन भर प्रयासरत
रहते हैं | वर्तमान सामाजिक परिवेश में यह आवश्यक है कि बच्चों में बचपन से ही ऐसे
संस्कार विकसित किये जाएँ जिससे वे अपनी संस्कृति एवं संस्कारों को अपनी धरोहर समझ
अपने जीवन को दिशा दे सकें | इस हेतु घर पर संस्कारित एवं धार्मिक भावना से
ओतप्रोत वातावरण निर्मित करना होगा | घर के प्रत्येक सदस्य एक दूसरे का सम्मान करें
साथ ही ऐसी भावना का विकास करें जो मानवतावादी हो और सद्विचारों से प्रेरित हो |
बड़ों के प्रति सम्मान, छोटों के प्रति स्नेह की भावना को घर में जगह दी जाए | समय - समय पर छोटे
- छोटे अनुष्ठान आयोजित किये जाते रहें ताकि घर का वातावरण शुद्ध रहे |
दैनिक दिनचर्या में पूजा - पाठ को विशेष
स्थान दिया जाए | स्वयं के कल्याण के साथ – साथ जगत कल्याण की कामना की जाए |
चूंकि समाज में व्याप्त कुरीतियों ने इस धरा को रहने लायक नहीं छोड़ा | किन्तु अभी
भी समय है कि ऐसे प्रयास हों जो कि लोगों का मार्गदर्शन कर सकें | उन्हें राह दिखा
सकें | इस झूठी मोह माया से उनका मोहभंग कर सके |
आवश्यकता
इस बात की है कि घर में भारतीय दर्शन, आत्म शुद्धि, आत्मज्ञान पर आधारित पुस्तकों
का संकलन हो | वेद और पुराण का संग्रह हो जो कि हमारे जीवन को दिशा दे सके |
परिवार के सभी सदस्य एक साथ बैठकर इन ग्रंथों में वर्णित सद्विचारों का आचमन करें
और आत्म शुद्धि का प्रयास करें | दैनिक जीवन में साधना और समाधि को विशेष स्थान
दें | ताकि मन की शांति के साथ – साथ तन की शांति भी संभव हो सके | धार्मिक
मान्यताओं को सर्वोपरि समझ उनका पालन करें | जन कल्याण हित कुछ प्रयास अवश्य करें
| जीवन में सत्संग को विशेष स्थान दें |
आज
आवश्यकता इस बात की भी है कि शिक्षा प्रणाली या पाठ्यक्रम में कुछ विशेष संशोधन
किये जाएँ | शिक्षा विज्ञानपरक न
होकर जीवन दर्शनपरक हो ताकि धार्मिक
मान्यताएं , धार्मिक मूल्य, नैतिक विचार ,बच्चों के जीवन का हिस्सा हो सकें | उन्हें
एक दिशा मिल सके | वह दिशा उन्हें राष्ट्र या समाज की धरोहर बना सके | ऐसी शिक्षा
की बहुत आवश्यकता है | जहां मनुष्य स्वयं के साथ – साथ दूसरों पर भी विश्वास कर सके | दूसरों का सम्मान कर
सके | बच्चों में अच्छे एवं बुरे के बीच
का अंतर करने की क्षमता विकसित की जाए | दूसरों के धर्म के प्रति सम्मान एवं आदर
की भावना का विकास किया जाए | जीवन को ऐसी दिशा दी जाए जहां मानव स्वयं को
आध्यात्मिक रूप से पुष्पित कर उस दिशा की ओर बढ़ चले जहां वह और उस परम तत्व अर्थात
परमात्मा का सानिध्य प्राप्त कर सके | मानव , अपने मानव शरीर से परे उस ब्रह्म में
लीन होने का प्रयास करे जो कि उसके जीवन का एकमात्र और अंतिम लक्ष्य हो सके | इसके
लिए उसे गुरु की शरण अति आवश्यक है किन्तु वर्तमान सामाजिक परिवेश में गुरु
घंटालों की संख्या ज्यादा है ऐसे में सद्चारित्रों की खोज करना एक कठिन कार्य हो
गया है | एक ऐसा चरित्र जो आपके जीवन को दिशा दे और आपको , अपने होने के अस्तित्व
क बोध करा सके , को खोजकर अपने जीवन का आधार बनाकर उस दिशा की ओर बढ़ें जो आपको
जीवन के सर्वोच्च आसन पर आसीन कर सके | और आप अपने जीवन को चरितार्थ कर स्वयं के
मोक्ष या मुक्ति की राह खोज सकें | यही है आध्यात्म से आत्मसाक्षात्कार या आत्म
मंथन या आत्म दर्शन |
ब्रह्म
में लीन , समाधि में स्थित मनुष्य की कुछ मुख्य विशेषताएं होती हैं जो कुछ इस
प्रकार हैं : -
·
ब्रह्म में लीन व्यक्ति समाज में रहकर भी एकांतवास पसंद
करता है |
·
इस प्रकार के चरित्रों के लिए संबंधों से कोई विशेष सरोकार
नहीं होता |
·
उस पर भौतिक संसार को कोई प्रभाव नहीं पड़ता |
·
वह वासनाओं से मुक्त जीवन जीता है |
·
वह ज्ञान की पराकाष्ठा को प्राप्त कर लेता है |
·
वह मार्गदर्शक का कार्य करने योग्य हो जाता है और समाज के
लिए पथ प्रदर्शक हो जाता है |
·
ब्रह्म में लीन मनुष्य को वेदों की आवश्यकता नहीं होती वह
समाधिस्थ होकर आत्मा और परमात्मा के मिलन को साकार कर लेता है |
·
वह मोक्ष का अधिकारी हो जाता है |
·
वह जीवित रहते हुए ही मुक्ति की अवस्था को प्राप्त कर लेता
है |
·
ऐसा चरित्र दूसरों की मुक्ति का मार्ग भी प्रशस्त करता है |
उपरोक्त अवस्थाएं एक ब्रह्म में लीन व्यक्ति कि वे अवस्थाएं
हैं जो उसे एक साधारण प्राणी से अलग करती है | इस प्रकार के चरित्र समाज में रहकर
भी समाज के हित के लिए कार्य करते हैं किन्तु स्वयं को मोह में नहीं उलझाते | इनके
जीवन में बंधन क कोई महत्त्व नहीं होता ये बंधन मुक्त जीवन जीते हैं |
दूसरी
ओर हम देखते हैं कि आध्यात्म के चरम को जीने के लिए जिन रास्तों या चरणों या
उपायों को सहारा बनाया जाता है उनमे से कुछ इस प्रकार हैं :-
·
मन्त्र का जाप करना चाहे वह गुरु मन्त्र हो या फिर किसी
इष्ट का जाप ,जीवन में स्थिरता लाता है |
·
योगा अर्थात योग की विभिन्न मुद्राओं जैसे प्राणायाम, आसन
आदि को अपने दैनिक जीवन का अहम हिस्सा बनाना |
·
दैनिक जीवन में प्रार्थना को विशेष स्थान देना किन्तु स्वयं
के साथ - साथ दूसरों के लिए और इस जगत के लिए
प्रार्थना करना सुखदायी होता है |
·
सबसे अच्छा हो कि आप मौन अभ्यास को भी अपने दैनिक जीवन में
जगह दें | यह आपको मानसिक एवं शारीरिक स्तर पर संतुलित रखेगा |
·
कोशिश करें कि आप विश्व के ज्यादा से ज्यादा धार्मिक
ग्रंथों का स्वाध्याय करें ताकि आपको अलग
- अलग धर्मों के बारे में उनके जीवन उद्देश्यों के बारे में जानकारी मिल
सके और आप स्वयं को और आध्यात्मिक रूप से और ज्यादा धनी बना सकें |
·
जीवन में संकीर्तन का भी अपना विशेष योगदान है | आप परिवार
के सदस्यों के साथ मिल - बैठकर इसका आनंद
उठायें | वैदिक मन्त्रं, श्लोकों के साथ -
साथ भिन्न – भिन्न धर्मों के भजनों का आप श्रवण करें |
·
कोशिश करें कि आप अपने गुरु या फिर कोई महान विभूति के
सानिध्य में रहकर उनसे उन प्रश्नों का समाधान ढूंढें जो आपके जीवन को दिशा दे सके
|
·
आप कोशिश करें कि आप अपने आसपास के पर्यावरण का हिस्सा बनें
| प्रकृति से आपका लगाव आपको स्वस्थ जीवन के प्रति जागरूक करेगा | पर्यावरण
संरक्षण के कार्यों में स्वयं को व्यस्त करें |
·
समाज का अस्तित्व सामाजिक कल्याण कार्यों से ही है अतः समाज सेवा के कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा
लें | बीमारों की सेवा करना, जरूरतमंद लोगों की सहायता करना, वृद्ध एवं अनाथ
बच्चों एवं परिवारों के लिए कल्याण के कार्य करने से मन को शांति मिलते है |
·
धार्मिक स्थलों जैसे मंदिर, गुरुद्वारा , मस्जिद , मज़ार या
फिर चर्च आदि स्थलों पर जाकर आप सेवा प्रदान कर सकते हैं |
·
आध्यात्मिक विषयों पर होने वाली गोष्ठियों का हिस्सा बनना न
भूलें | आध्यात्म से सम्बंधित विषय पर आधारित प्रश्नों के हल अवश्य खोजने का कष्ट
करें |
·
स्वयं को कोशिश कर सादा जीवन जीने की ओर प्रेरित करें |
उपरोक्त विषयों को ध्यान में रखकर मनुष्य स्वयं के उद्धार
के अपने जीवन उद्देश्य की प्राप्ति कर सकता है | ये सभी विषय आपके जीवन पर अनुकूल
प्रभाव डालते हैं आपको भटकने नहीं देते | हमारे जीवन का यह प्रयास होना चाहिए कि
हम स्वयं को तो नियंत्रित करें हीं साथ ही आसपास के सभी लोगों को भी दिशा दे सकें
|
इस
लेख का उद्देश्य मनुष्य को उसके होने का एहसास कराना है | उसे अपने जीवन को बेहतर
तरीके से जीना सिखाना है | यह लेख किसी जाति विशेष पर आधारित न होकर व्यक्तिगत रूप
में मनुष्य स्वयं को समाज, राष्ट्र या फिर अन्तराष्ट्रीय स्तर पर कैसे स्थापित कर
सकता है और दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकता है इस बात पर जोर देता है | इस
लेख के माध्यम से आने वाली पीढ़ी को दिशा देना है ताकि वे राष्ट्र की धरोहर बन सकें
|
सन्दर्भ :-
आध्यात्म - शिक्षा का अनिवार्य अंग
(भारतीय स्कूली शिक्षक - वर्ग द्वारा
लिखित निबंध संग्रह )- हंसा (संपादिका), न्यू बुक सोसायटी ऑफ इंडिया , नई दिल्ली ,
पेज 1 से 197.
इस लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया , कृपया
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