Wednesday, 27 August 2014

स्वयं पर संयम कैसे प्राप्त करें ?

स्वयं पर संयम कैसे प्राप्त करें ?
द्वारा

अनिल कुमार गुप्ता

                                                         एम कॉम , एम ए ( अर्थशास्त्र एवं अंग्रेजी साहित्य ),
 एम.लिब.आई.एस.सी., डी .सी.ए .,एच.डब्लू .बी .(स्काउट्स)

                                                                                  पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का

स्वयं पर संयम जीवन जीने की कला का एक आभूषण एवं एक महत्वपूर्ण पक्ष माना गया है| दूसरों से तिरस्कृत होकर भी स्वयं को संयमित कर समाज में व राष्ट्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान प्राप्त करना संयमशील  होने के गुण को परिलक्षित करता है | संयमशील होने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि आप कर्महीन हो जाएँ , कर्तव्यहीन हो जाएँ | संयमशील अर्थात किसी भी प्रकार की परिस्थिति में स्वयं को स्वयं के द्वारा नियंत्रित करें | यह नियंत्रण शारीरिक एवं मानसिक दोनों अवस्थाओं से होकर गुजरता है | आप स्वयं परिचित हैं महात्मा गाँधी , जवाहरलाल नेहरु जैसी अनेक विभूतियों से जिन्होंने स्वयं को नियंत्रित कर अहिंसा के मार्ग को अपनाकर एक गुलाम देश को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराया | कई ऐसे उदाहरण हैं जहां महात्मा बुद्ध , महावीर जैन , गुरुनानक जैसी विभूतियों के जीवन परिचय का हम विश्लेषण करते हैं तो पाते हैं कि इन सभी के जीवन में संयम रुपी अलंकरण का विशेष योगदान रहा है | एक डाकू का धार्मिक होकर धर्म ग्रन्थ की रचना करना ये सब संयम रुपी मार्ग पर विचरने का ही परिणाम है |
                      संयमशील व्यक्ति बनने के लिए मुख्यतया निम्न चरणों से होकर गुजरना पड़ता है :-
·       सात्विक भोजन पर बल दें |
·       स्वस्थ विचारों का जीवन में समावेश करें |
·       महान विभूतियों के जीवन आदर्शों का अपने जीवन में समावेश करें |
·       सुबह – शाम प्राणायाम करें |
·       धार्निक पुस्तकों का आचमन करें और उन विचारों को आत्मसात करने का प्रयास करें |
·       धार्मिक स्थल – मंदिर , मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च जाएँ और कुछ समय वहां एकांत में बैठकर उस प्रभु का चिंतन करें |
·       ऐसी परिस्थितियों को टालें जहां लगता है कि आप पर क्रोध हावी हो सकता है |
·       उन कार्यों को ना करें जो आपकी एकाग्रता को भंग कर सकते हैं |
·       संतों , पीरों की वाणी को जीवन में आत्मसात करने का प्रयास करें |
·       स्वयं के धर्म को प्रधान समझते हुए एनी धर्मों में वर्णित सुविचारों को ग्रहण करने का प्रयास करें |
·       दार्शनिकों , विचारकों , संतों , महान विभूतियों के जीवन में घटित महत्वपूर्ण एवं प्रेरक प्रसंगों को पढ़ें वा चिंतन करें |
·       अपनी ऊर्जा को बचाकर रखें वा सद्कार्यों में उसका उपयोग करें |
·       वार्तालाप हेतु उन शब्दों का चयन करें जो आपकी वाणी को अलंकृत करें और आप अपनी वाणी से दूसरों को प्रभावित कर सकें |
·       समाज सेवा से परिपूर्ण गतिविधियों में हिस्सा लें जिससे आप और ज्यादा संयमशील एवं संवेदनशील हो सकते हैं |
·       मानव मनोविज्ञान विषय का अध्ययन करें और दूसरों को जानने वा परखने की क्षमता स्वयं में पैदा करें | आप इसके द्वारा अपने आपको बेहतर स्थिति में समाज में स्थापित कर पायेंगे चूंकि आप संयमशील हैं इस बात का गलत फायदा ना उठा सके इस हेतु मानव मनोविज्ञान विषय का अध्ययन करें |
·       विभिन्न विषयों पर महान विभूतियों द्वारा , चिंतकों द्वारा दिए गए सुविचारों , नारों को पढ़ें वा उनके गूढ़ अर्थ को समझने का प्रयास करें |
·       सुविचारों के अध्ययन के साथ – साथ लेखन में भी रूचि पैदा करें और ऐसे विषयों पर अपने विचारों को संकलित करें जो समाज को एक नै दिशा दिखाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें |
·       योग का अभ्यास करें व स्वयं को योग के माध्यम से उन विचारों से स्वयं को दूर ले जाएँ जो आपके संयमशील होने के मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं |
·       अपने इष्ट के चिंतन में समय व्यतीत करें व गुरुमन्त्र का नियमित आचमन करें |
·       स्वयं के संयमशील होने का परीक्षण समय – असमय करते रहें जिससे आपके संयमशील होने में और प्रगाढ़ता आ सके |
उपरोक्त बातों पर यदि आप ध्यान दें और इसे अपने जीवन में उतारने का प्रयास करें तो आप पायेंगे कि आपका संयमशील होना ही आपकी सफलता की प्रथम सीढ़ी है | यह विशेषता आपको समाज में स्थापित करेगी | लोगों के मन में आपके प्रति विश्वास बढेगा और लोग आपको अपना शुभचिंतक समझेंगे | आप एक विशेष छवि के रूप में अन्य लोगों के स्मृति पटल में स्थित हो जायेंगे |

मेरी शुभकामनायें आपके साथ हैं |

इस लेख को पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया |