Wednesday, 22 January 2014

आध्यात्म - वर्तमान शिक्षा प्रणाली की मूलभूत आवश्यकता


आध्यात्म
                वर्तमान शिक्षा प्रणाली की मूलभूत आवश्यकता
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द्वारा
                  अनिल कुमार गुप्ता
 एम कॉम , एम ए ( अंग्रेजी एवं अर्थशास्त्र ), डी सी ए , एम लिब आई एस सी , स्काउट मास्टर ( एच डब्लू बी )
पुस्तकालय अध्यक्ष
केंद्रीय विद्यालय फाजिल्का
वर्तमान शिक्षा प्रणाली सामजिक दृष्टिकोण को पीछे छोड़ भौतिकतावादी विचारधारा को अपनाकर  आज वर्तमान शिक्षा प्रणाली ऐसे दोराहे पर आकर खड़ी हो गयी है जहां उसे इस बात का आभास हो गया है कि उसने नैतिक मूल्यों से सम्बंधित शिक्षा प्रणाली न अपनाकर ऐसी भूल की है जिसे उसे पूरा करने में सेकड़ों वर्ष लग जायेंगे | भौतिकवाद की अंधी दौड़ में केवल शिक्षाविद ही शामिल नहीं रहे बल्कि इसके लिए अन्वेषक , खोजकर्ता व अनुसंधानकर्ता भी पूरी तरह से उत्तरदायी हैं जिन्होंने आध्यात्म में रूचि न दिखाकर भौतिक विकास को ही मानव विकास की सबसे बड़ी उपलब्धि समझा |
                   हम एक साधारण सी बात से इस तथ्य को समझ सकते हैं कि विश्व में व्याप्त सभी प्रमुख धर्मों , उनकी विचारधाराओं को गौर से देखें तो हम पाते हैं कि मानव जीवन का लक्ष्य मानव को मनुष्य या इंसान बनाकर , उसमे सामाजिकता के बीज बोकर और अंत में जीवन को मोक्ष मार्ग की ओर प्रस्थित करना रहा है सभी प्रमुख धार्मिक ग्रंथों का निर्माण इस बात का सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रमाण है और इन धार्मिक ग्रंथों की यह मान्यता रही है कि परमेश्वर केवल एक है और उसे प्राप्त करना ही जीवन का मुख्य लक्ष्य है | भाषायें अलग – अलग रही हैं पर मंत्रोच्चार , प्रभु की आराधना , उसमे अटूट विश्वास , उसे पाने के लिए किये जाने वाले माध्यम भी अलग- अलग रहे हैं पर उनकी मंजिल एक ही थी आत्मा का परमात्मा में विलय |
                   सदियों से मानव का एक मुख्य प्रयास “ आत्म तत्व “ की खोज रहा है | उपासना के विभिन्न स्वरूप निर्मित किये गए | शारीरिक पीड़ा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गयी एवं एकांतवास को प्रमुख माना गया | आत्म तत्व का ज्ञान , परमात्मा का साक्षात्कार ये मुख्य विषय रहे हैं जिसने मानव को सांसारिक , सामाजिक से ऊपर उठाकर आध्यात्म की ओर मुखरित किया | कहीं सांसारिक, सामाजिक से ऊपर उठाकर दूर एकांत में प्रयास किये गए तो कहीं यह कहा गया कि सांसारिक , सामजिक होते हुए भी आत्म तत्व का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है |
                   एक रोचक तथ्य जो हमारे सामने आता है वह है परमात्म रूप का मानव रूप में अवतार | इन अवतारों का मुख्य उद्देश्य रहा है एक ओर मानव को मानव तत्व से बोध कराना तो दूसरी ओर उसे  मानावता , सामाजिकता के विभिन्न  पहलुओं भक्ति , प्रेम ,दया , करुणा, धार्मिक भेदभाव से परे एक स्वस्थ वातावरण व समाज का निर्माण | इन अवतारों ने हमें यह भी सन्देश दिया कि मानव होकर मानवता को सर्वोपरि समझो किसी भी प्रकार के भेदभाव को जीवन में आना आने दो | मानव जीवन अनमोल है इसकी सद्गति व मोक्ष के प्रयास करो | सभी धर्मों के प्रति समान भाव रखो | सभी धर्मों में व्याप्त शिक्षाओं को ग्रहण कर मुक्ति मार्ग की ओर प्रस्थान करो |
                   सभी धर्मों में ईश्वर प्राप्ति के जो मार्ग बताये गए हैं ये रास्ते चाहे दिखने में पेड़ के पत्ते की तरह भिन्न – भिन्न दृष्टिगोचर होते हैं लेकिन सभी पत्ते एक ही पेड़ से जुड़े रहते हैं उसी प्रकार ईश्वर प्राप्ति के अनके मार्ग होते हुए भी मंजिल एक ही है ईश्वर प्राप्ति, केवल ईश्वर प्राप्ति |
                   हमारी शिक्षा प्रणाली में आध्यात्म ज्ञान नाम से कोई व्यवथा या प्रावधान नहीं किया गया है | इस शिक्षा प्रणाली से हम केवल मानव मस्तिस्क को व शरीर को भोजन पहुंचाने का प्रयास कर रहे  है न कि इस बात की ओर ध्यान दिया जा रहा है जो शिक्षा ग्रहण कर रहा है उसे यह मालूम ही नहीं कि वह कौन है ? उसके शरीर में कभी न समाप्त होने वाला तत्व “आत्मा” की भी कोई उपस्थिति है | सदियों हमारे ऋषि महात्माओं द्वारा किये गए प्रयास व उससे प्राप्त अनुभूति व उपलब्धियों जो कि हमारे जीवन  में संस्कार व संस्कृति के रूप में विद्यमान होने चाहिए थे आज नहीं है | महात्मा बुद्ध का बोधिसत्व , महावीर जैन का आध्यात्म , इन विचारों को हम सहेज कर , पूँजी बनाकर नहीं रख सके | इन सबके पीछे एक ही मुख्य कारण रहा है, वह है वर्तमान शिक्षा प्रणाली |
                        वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने विद्यार्थियों को भौतिक जगत से जोड़ने हेतु पूरे प्रयास इए ताकि वह अपनी जीविका को अच्छे से चला सके | श्रेष्ठ इंजीनियर , डॉक्टर या फिर कोई प्रशासनिक अधिकारी बन सके , एक अच्छा व्यापारी व कुशल नेता हो सके | पर उसे मानव बनाने, मानवता के रास्ते पर चलने , पथ प्रदर्शक बनने , अपनी संस्कृति व संस्कारों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक अग्रसर करने की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया |
                   मानव को मानव क्यों कहा गया ? मानव रूप में मानव के कर्म , उसके  दायित्व , उसकी सामाजिक उपयोगिता , धार्मिक उपयोगिता , जीवन का सत्य , जीवन का मुक्तिमार्ग , मनुष्य और अन्य प्राणियों के बीच का अंतर , प्रकृति प्रेम , आध्यात्मिक आदि विषयों को वर्तमान शिक्षा प्रणाली ने अपने विषय कोष से बाहर का रास्ता दिखा रखा है | बातें नैतिकता व मानव मूल्यों को विकसित करने की अनके स्तरों पर के जाती रही है पर इन विषयों पर कोई नयी खोज नहीं की जा रही है न कि यह जानने का प्रयास किया जा रहा है कि उन विभूतियों जिन्होंने हमें ये धरोहर दी थी उसे हम क्या संभाल पाए, क्या संरक्षित कर पाए |
                   वर्तमान शिक्षा प्रणाली में ऐसे विषयों को समावेशित किया जाना अतिआवश्यक है जो हमारी शिक्षा प्रणाली को रोचकपूर्ण व प्रभावशाली बना सके | विद्यार्थियों के मन में अन्य विषयों के साथ अपने आपको आध्यात्म से जोड़ने का सुअवसर प्राप्त हो सके | इसके लिए कोई वर्तमान शिक्षा प्रणाली में विशेष परिवर्तनों की आवश्यकता नहीं है बल्कि जरूरत है सभी पाठ्यक्रमोंके साथ एक अतिरिक्त विषय के रूप में इस विषय को बच्चों को पढ़ाया जाए | इस हेतु विभिन्न धर्मों के धर्मगुरुओं के माध्यम से कार्यशालायें आयोजित कर विभिन्न धर्मों व उनके विचारों को विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क में स्थापित कराया जाए इसके माध्यम से एक और प्रयास किया जाए जिसमे विद्यार्थियों को एकांत वास में आध्यात्म की प्राप्ति का प्रत्यक्ष अनुभव कराया जाए | प्रकृति व परमात्मा के मिलन का साक्षात्कार कर मनुष्य एक विशेष प्रकार की अनुभूति प्राप्त करता है |
                             जरूरत है हम इस भौतिक दुनिया से बाहर निकल आध्यात्मिक विश्व में प्रवेश करैं | तन को शुद्ध करें साथ ही मन को को भी शुद्ध करैं | एक ऐसा प्रयास करैं जो हमें मानव तत्व का बोध करा सके और प्रस्थित कर सके उस परम तत्व की ओर , जो हमारे जीवन का लक्ष्य है |
आध्यात्म पर दार्शनिकों , विचारकों एवं शिक्षाविदों के मत
स्वामी विवेकानन्द :- शिक्षा का अर्थ है पूर्णता की अभिव्यक्ति और आध्यात्म का अर्थ है आत्मा की अभिव्यक्ति |
अलबर्ट आइन्स्टीन :- आध्यात्म उस असीमित सर्वोपरि आत्मा की विनम्र प्रस्तुति है |
बेकन :- आध्यात्म मनुष्य को पूर्ण बनाता है तर्क उसे प्रत्युत्पन्न बनाता है और लेखन उसमे पूर्णता लाता है |
स्वामी विवेकाननद :- अपनी आत्मा का आह्वान करो और देवत्व प्रदर्शित करो , अपने बच्चों को सिखाओ कि आत्मा दिव्य है और आध्यात्म सकारात्मक है , नकारात्मक प्रलाप नहीं |
डेविड लिविन्गस्टोन :- शिक्षा के कई कार्य हैं ज्ञान को आध्यात्म से जोड़ना , बुद्धि का विकास करना , संबंधों को बढ़ाना और सभ्यता के सम्बन्ध में आध्यात्म की जानकारी देना |
एकहार्ट :- आत्मा को यदि नापना है तो ईश्वर से नापना चाहिये क्योंकि ईश्वर का धरातल और आत्मा का धरातल एक ही है |


लेख पढ़ने के लिए आपका शुक्रिया







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